Cardiology | by Dr. Tarun Praharaj | Published on 14/08/2024
हृदय हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, जिसकी सहायता से हमारे पूरे शरीर में रक्त प्रवाह सही रहता है। हृदय भी चार भाग में बंटा हुआ है - दो ऊपरी कक्ष (अलिंद/एट्रिया) और दो निचले कक्ष (निलय/वेंट्रिकल)। अलिंद विकम्पन या एट्रियल फिब्रिलेशन एक ऐसी चिकित्सा स्थिति है, जिसमें दिल के ऊपर के भाग में अनियमितता होती है। यह एक हृदय विकृति है, जिसमें सही तरीके से रक्त पंप नहीं हो पाता है और इससे कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यदि आप हृदय से संबंधित किसी भी बीमारी का सामना कर रहे हैं, तो कोलकाता के बीएम बिरला हार्ट रिसर्च सेंटर के सर्वश्रेष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञों से अवश्य मिलें।
एट्रियल फिब्रिलेशन एक प्रकार की हृदय विकृति है, जिसमें हृदय के ऊपरी कक्ष में समस्या होती है, जिसके कारण अनियमितता बनी रहती है। आमतौर पर एट्रिया एक कॉर्डिनेटिड तरीके से रक्त को वेंट्रिकल में धकेलता है। लेकिन एट्रियल फिब्रिलेशन के कारण एट्रिया अनियमित रूप से अपना कार्य करता है, जिसके कारण रक्त ठीक तरीके से वेंट्रिकल में नहीं पहुंच पाता है।
एट्रियल फिब्रिलेशन एक ऐसी समस्या है, जो अक्सर बढ़ती उम्र के साथ लोगों को परेशान करती है। वहीं पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह समस्या अधिक आम है। एट्रियल फिब्रिलेशन को आप हृदय की एक आम समस्या के रूप में देख सकते हैं, जिसका इलाज तभी संभव हो पाता है, जब इसकी पुष्टि समय पर हो जाए।
अधिकतर मामलों में यह सामने आया है कि इस समस्या से जीवन को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं होता है। लेकिन लक्षणों पर ध्यान न देना या फिर समय पर इलाज न करना बहुत सारी समस्याओं को जन्म दे सकता है। यही कारण है कि लक्षणों के दिखने पर तुरंत एक अनुभवी हृदय रोग विशेषज्ञ से मिलने की सलाह दी जाती है।
इस स्थिति के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग नजर आते हैं। वहीं कुछ लोगों में तो इस स्थिति के कोई भी लक्षण नहीं दिखते हैं, जबकि अन्य लोगों में इस स्थिति के कुछ सामान्य लक्षण देखने को मिलते हैं जैसे कि -
एट्रियल फिब्रिलेशन को चार मुख्य प्रकारों में बांटा गया है। चलिए चारों को एक-एक करके समझते हैं -
असामयिक एट्रियल फिब्रिलेशन: इस प्रकार के एट्रियल फिब्रिलेशन में समस्या कुछ घंटों तक बनी रहती है, जिसके लक्षण भी नजर आ सकते हैं।
स्थायी एट्रियल फिब्रिलेशन: इस स्थिति में व्यक्ति को लगातार लक्षण दिखाई देते हैं। इसके कारण रोग की स्थिति को समझना और इलाज करना आसान हो जाता है।
क्रोनिक एट्रियल फिब्रिलेशन: इस स्थिति में लक्षण लगभग 12 महीने या उससे अधिक समय तक बने रहते हैं।
अस्थायी एट्रियल फिब्रिलेशन: इस स्थिति में सामान्य हृदय की लय को फिर से बहाल करना आसान नहीं होता है। इस स्थिति में हृदय गति और रक्त के थक्के को नियंत्रित करने के लिए दवा की आवश्यकता होती है।
यदि एट्रियल फिब्रिलेशन अनुपचारित रह जाए, तो इसके कारण कुछ स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं जैसे कि -
स्ट्रोक: यदि किसी भी कारणवश हृदय की गति में कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो इसके कारण रक्त के स्वाभाविक प्रवाह में भी बाधा आती है, जिसके कारण रक्त हृदय के ऊपरी कक्ष में जम जाता है। इसके कारण रक्त के थक्के बन जाते हैं, जिससे दिमाग तक रक्त नहीं पहुंच पाता है, जो स्ट्रोक का एक मुख्य कारण साबित होता है।
हार्ट फेल्योर: रक्त के थक्के जमने के कारण रक्त पूरे शरीर में नहीं पहुंच पाता है, जिसके कारण हार्ट फेल्योर की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
एट्रियल फिब्रिलेशन की जांच करने के लिए डॉक्टर कई टेस्ट करते हैं, लेकिन मुख्य रूप से निम्न जांच की सहायता से एट्रियल फिब्रिलेशन की जांच आसानी से हो पाती है -
चेस्ट का एक्स-रे: सबसे पहले डॉक्टर छाती का एक्स-रे ही कराते हैं। यह एक मूल परीक्षण है, जिसका सुझाव सभी डॉक्टर देते हैं।
ईसीजी या इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम: इस टेस्ट में हृदय में उत्पन्न होने वाली विद्युत तरंगों की जांच की जाती है। जिससे स्थिति का आकलन अच्छे से हो पाता है।
होल्टर: इसे पोर्टेबल पॉकेट ईसीजी मशीन के नाम से भी जाना जाता है। इस जांच में हृदय की गति की जांच और उसकी रिकॉर्डिंग की जाती है।
इवेंट रिकॉर्डर: होल्टर के समान ही इस परीक्षण में भी हृदय के संकेत को रिकॉर्ड किया जाता है।
इकोकार्डियोग्राम: इस टेस्ट में ध्वनि तरंगों का उपयोग करके हृदय की तस्वीर बनाई जाती है। इसकी सहायता से हृदय रोग और रक्त के थक्कों की आसानी से पुष्टि हो सकती है।
स्ट्रेस टेस्ट: टीएमटी या ट्रेडमिल मिल टेस्ट की मदद से शरीर पर पड़ने वाले तनाव की स्थिति का आकलन हो सकता है।
रक्त परीक्षण: यदि यह समस्या थायराइड के कारण उत्पन्न हुई है, तो हाइपरथायरायडिज्म की समस्या की जांच के लिए रक्त परीक्षण का सुझाव दिया जाता है।
एट्रियल फिब्रिलेशन के इलाज का मुख्य कारण हृदय गति को नियंत्रित करना है। इसके साथ-साथ रक्त के थक्के बनने से रोकने और लक्षणों को कम करने के लिए इलाज की योजना बनाई जाती है। इलाज में विभिन्न विकल्पों का उपयोग होता है जैसे कि -
दवाएं: एट्रियल फिब्रिलेशन के इलाज के लिए मुख्य रूप से दवाओं का सुझाव दिया जाता है। यह दवाएं दिल की धड़कन को सामान्य करने में मदद करती है। इसके अतिरिक्त रक्त को पतला करने वाली दवाएं रक्त के थक्के नहीं बनने देते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ और दवाएं भी होती हैं, जो लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं।
कार्डियोवर्शन: यह एक आधुनिक प्रक्रिया है, जिसमें इलेक्ट्रिक शॉक वेव का उपयोग किया जाता है।
एबलेशन:इस प्रक्रिया के माध्यम से दिल के ऊतकों को नष्ट कर दिया जाता है, जिसके कारण अनियमित हृदय की धड़कन का इलाज हो पाता है।
पेसमेकर: इस उपकरण को छाती में लगाया जाता है, जिससे दिल की धड़कन को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
जीवनशैली में बदलाव: कई सारी आदतों में बदलाव करने की सलाह दी जाती है जैसे - स्वस्थ आहार लेना, व्यायाम करना, धूम्रपान और शराब छोड़ना, इत्यादि।
एट्रियल फिब्रिलेशन हृदय की गंभीर समस्या है, जिसका इलाज संभव है। यदि आपको एट्रियल फिब्रिलेशन के लक्षण दिखाई देते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। त्वरित जांच और इलाज स्थिति में जल्दी सुधार के साथ जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार ला सकता है।
इस स्थिति का सटीक कारण अभी भी अज्ञात है। हालांकि कुछ कारणों से यह समस्या हो सकती है जैसे कि - हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, थायराइड की समस्याएं, मोटापा, डायबिटीज, और उम्र। इसके अतिरिक्त दवाएं और शराब का अधिक सेवन भी इस स्थिति का मुख्य कारण साबित हो सकता है।
एट्रियल फिब्रिलेशन के जोखिम को कम करने के उपाय में जीवनशैली में बदलाव, स्वस्थ वजन बनाए रखना, नियमित व्यायाम करना, संतुलित आहार, धूम्रपान छोडना, शराब का सेवन कम करें, इत्यादि शामिल है।
इस प्रश्न का उत्तर रोगी की स्थिति और उनके स्वास्थ्य के आधार पर निर्भर करता है। कुछ मामलों में दवाओं से ही इलाज हो सकता है, वहीं कुछ लोगों को सर्जरी की आवश्यकता होती है। इलाज में लगने वाला समय आपको डॉक्टर ही बता सकते हैं।