उच्च रक्तचाप, हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर एक एसी स्वास्थ्य समस्या है, जिससे दुनिया भर के लाखों लोग प्रभावित होते हैं। यह एक ऐसी समस्या है, जो बिना किसी स्पष्ट लक्षण के एक व्यक्ति को प्रभावित करता है। यही कारण है, इस रोग को "साइलेंट किलर" के नाम से भी जाना जाता है।
उच्च रक्तचाप के शुरुआती मामलों में कोई खास लक्षण नजर नहीं आते हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह स्थिति आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे यह हृदय पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती है। स्वयं को स्वस्थ रखने और गंभीर जटिलताओं को रोकने के लिए हृदय के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है। इस ब्लॉग की मदद से आपको हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग के बीच के संबंध के बारे में पूर्ण जानकारी मिल जाएगी। हालांकि हृदय रोग के संबंध में पूर्ण जानकारी के लिए हम आपको सलाह देंगे कि तुरंत एक अनुभवी हृदय रोग विशेषज्ञ से मिलें और इलाज लें।
सरल शब्दों में कहा जाए तो ब्लड प्रेशर रक्त का एक ऐसा प्रेशर है, जो सीधे धमनियों की दीवारों पर पड़ता है। आप इस प्रेशर को दो भाग में विभाजित कर सकते हैं - सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर। सिस्टोलिक प्रेशर वह होता है, जब आपका हृदय धड़कता है, और डायस्टोलिक प्रेशर वह है जब आपका हृदय धड़कनों के बीच आराम करता है।
ब्लड प्रेशर एक सीमित स्तर तक ही नॉर्मल रहता है। आमतौर पर 130/80 mmHg से ऊपर की रीडिंग को हाई ब्लड प्रेशर की सूची में गिना जाता है। लंबे समय तक हाई ब्लड प्रेशर की स्थिति हमारे शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकती है, जिसकी वजह से हृदय रोग, स्ट्रोक, किडनी फेलियर और दृष्टि हानि जैसी गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।
उच्च रक्तचाप और हृदय रोग के बीच एक मजबूत एवं गहरा संबंध है। चलिए इसे समझते हैं। जब किसी भी व्यक्ति को लंबे समय तक ब्लड प्रेशर की समस्या होती है, तो धमनियों में मौजूद रक्त का तेज प्रेशर उन धमनियों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके कारण धमनियां कठोर और संकीर्ण हो जाती है, जिससे हृदय में मौजूद ऑक्सीजन युक्त रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है।
यह क्षति हृदय रोग का कारण बन सकता है, जैसे कि कोरोनरी धमनी रोग (सीएडी), दिल की विफलता (हार्ट फेल्योर) और दिल का दौरा (हार्ट अटैक)। हाई ब्लड प्रेशर के कारण हृदय पर अतिरिक्त प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण हृदय की मांसपेशियां मोटी हो जाती है, जिससे वह अपना सामान्य काम भी नहीं कर पाती हैं। इस स्थिति को चिकित्सा भाषा में हाइपरट्रॉफी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल के कारण धमनियों में प्लाक का निर्माण होता है, जिससे वह संकरी हो जाती है, जिसे एथेरोस्क्लेरोसिस के नाम से जाना जाता है। इससे रक्त की पूर्ति नहीं होती है, जो स्ट्रोक या दिल के दौरे जैसी समस्या का कारण भी बन सकता है।
हाई ब्लड प्रेशर को दो प्रकारों में बांटा गया है जैसे कि - प्राइमरी और सेकेंडरी हाई ब्लड प्रेशर। प्राइमरी हाई ब्लड प्रेशर की समस्या कई वर्षों में धीरे-धीरे विकसित होती है और यह उच्च रक्तचाप का आम प्रकार है। मुख्य रूप से इस प्रकार के रक्तचाप का कारण जेनेटिक्स, पर्यावरण और जीवन शैली कारक का संयोजन होता है। वहीं दूसरी तरफ सेकेंडरी ब्लड प्रेशर, गुर्दे की बीमारी, हार्मोनल विकार या अत्यधिक शराब के सेवन जैसी स्थितियों के कारण उत्पन्न होती है। हाई ब्लड प्रेशर के कई जोखिम कारक होते हैं जैसे कि -
उच्च रक्तचाप और हृदय रोग की रोकथाम के लिए आपको कुछ चीजों में बदलाव करने की आवश्यकता हो सकती है। उच्च रक्तचाप और हृदय रोग की रोकथाम के लिए निम्न उपायों का पालन आप कर सकते हैं -
हालांकि ऊपर बताए गए टिप्स आपकी मदद कर सकते हैं, लेकिन कुछ घरेलू उपायों की मदद से आप हाई ब्लड प्रेशर को आसानी से मैनेज कर सकते हैं -
इस बात में कोई संशय नहीं है कि रक्तचाप हृदय रोग का एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है, जिसे मैनेज करने से हृदय भी स्वस्थ रह सकता है। इसके कारणों, जोखिम कारकों और लक्षणों की पहचान करके आप इस स्थिति को आसानी से संतुलित कर सकते हैं। हाई बीपी को मैनेज करने के लिए आपको कुछ बातों का खास ख्याल रखना होगा जैसे कि - नियमित निगरानी, स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और चिकित्सा मार्गदर्शन प्राप्त करना। हृदय रोग के इलाज में एक अनुभवी कार्डियोलॉजिस्ट आपकी मदद कर सकते हैं, इसलिए बिना देर किए परामर्श लें।
उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए आप निम्न कार्यों को कर सकते हैं -
उच्च रक्तचाप का इलाज संभव नहीं है, लेकिन ऊपर बताए गए उपायों की मदद से इसे आसानी से मैनेज किया जा सकता है।
उच्च रक्तचाप से बचने के लिए आपको अपने आहार में फल, सब्जियां, होल ग्रेन्स, लीन प्रोटीन और कम वसा वाले डेयरी प्रोडक्ट को शामिल करना चाहिए।
उच्च रक्तचाप की स्थिति के कारण कई प्रकार के हृदय रोग की संभावना बनी रहती है जैसे कि -
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