हाई कोलेस्ट्रॉल मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को भी प्रभावित कर डिमेंशिया का खतरा बढ़ा सकता है। इसलिए स्वस्थ जीवनशैली, नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और डॉक्टर से परामर्श जरूरी है।
कभी-कभी कोई सामान रख कर भूल जाना शायद एक सामान्य स्थिति हो सकती है, लेकिन कमजोर याददाश्त होना आपके दिल को कमजोर कर सकता है। डिमेंशिया जैसी स्वास्थ्य समस्या धीरे-धीरे जीवन की खुशियों को खत्म करती है।
वहीं दूसरी तरफ कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ना भी सिर्फ हृदय रोग ही नहीं, बल्कि मस्तिष्क की गंभीर बीमारियों का भी संकेत देता है। आज हम इस ब्लॉग की मदद से समझेंगे कि कोलेस्ट्रॉल और डिमेंशिया कैसे जुड़े हैं, और किस तरह आप अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा कर सकते हैं। यदि आप या फिर आपके परिवार में से किसी को कोलेस्ट्रॉल या फिर डिमेंशिया की समस्या है, तो अभी हमारे अनुभवी हृदय रोग विशेषज्ञ या न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श लें।
कोलेस्ट्रॉल हमारे शरीर में बनने वाला एक प्राकृतिक फैट है, जिसका निर्माण हमारे शरीर के टिश्यू में होता है। कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता हमारे शरीर को होती है। भारत सरकार के द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission (NHM)) के अनुसार, कोलेस्ट्रॉल दो प्रकार का होते हैं -
जब हमारे शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है, तो यह हृदय रोग के साथ-साथ मस्तिष्क की धमनियों को भी प्रभावित करता है।
डिमेंशिया एक ऐसा रोग है, जिसमें मस्तिष्क की कोशिकाएं धीरे-धीरे प्रभावित होती हैं। इसके कारण याददाश्त, सोचने-समझने और दैनिक जीवन के काम करने में परेशानी होती है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस {National Institute of Mental Health and Neurosciences (NIMHANS)} के अनुसार, भारत में डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की संख्या लगभग 7 लाख या इससे अधिक है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है, जो कि एक चिंता का विषय बना हुआ है। आयु, आनुवंशिकता (जेनेटिक), अस्वस्थ जीवनशैली और हाई कोलेस्ट्रॉल इस स्वास्थ्य समस्या के कुछ प्रमुख कारण है। इसके सटीक कारण की पहचान के लिए टेस्ट और डॉक्टर से परामर्श बहुत ज्यादा जरूरी है।
डिमेंशिया की स्थिति में निम्न लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं -
कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के कारण कुछ खास लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं जैसे कि -
इन लक्षणों के दिखने पर आप निम्न कार्यों को करके अपने कोलेस्ट्रॉल को आसानी से मैनेज करने पर अपना ध्यान देना चाहिए -
2024 में WHO की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि हाई कोलेस्ट्रॉल मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को प्रभावित कर डिमेंशिया का खतरा बढ़ा सकता है। हाई LDL कोलेस्ट्रॉल मस्तिष्क में सूजन और अमाइलॉइड प्रोटीन की बढ़ोतरी का कारण हो सकता है, जो कि अल्जाइमर और अन्य डिमेंशिया का कारण भी बनता है।
इन्डियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अनुसार, हाई कोलेस्ट्रॉल वाले मरीजों में डिमेंशिया के जोखिम में 20-30% तक की वृद्धि देखी गई है, जो कि स्वयं एक बहुत बड़ी संख्या है।
हाई कोलेस्ट्रॉल के कारण डिमेंशिया का खतरा हो सकता है, जिसके स्वयं कई कारण है जैसे कि -
कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए कई दवाएं उपलब्ध हैं। मुख्य रूप से स्टैटिनदवाएं कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। कई रिसर्च में यह सामने आया है कि स्टैटिन का सेवन करने वाले लोगों में डिमेंशिया का खतरा भी कई गुना कम हो जाता है। हालांकि यह दवा इस स्थिति के इलाज का अंतिम विकल्प नहीं है। यह एक सहायक उपाय है, जिसका उपयोग डॉक्टर कभी-कभी ही करते हैं। स्वस्थ जीवन शैली अपनाना—जैसे संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, तनाव प्रबंधन—अत्यंत महत्वपूर्ण है। कोलेस्ट्रॉल को कम करने में आपकी जीवनशैली बहुत महत्वपूर्ण योगदान देती है। चलिए कुछ उपायों को समझते हैं, जिससे डिमेंशिया से आप आसानी से बच सकते हैं-
डिमेंशिया और कोलेस्ट्रॉल के बीच का कनेक्शन समझकर आप न केवल अपने दिल की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि अपनी याददाश्त और मानसिक स्वास्थ्य की भी सुरक्षा कर सकते हैं। WHO और भारत सरकार के स्वास्थ्य निर्देशों का पालन करें, समय-समय पर जांच करवाएं और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।
आपके और आपके परिवार के लिए सही कदम उठाने का यही सही वक्त है। अगर आप डिमेंशिया या कोलेस्ट्रॉल को लेकर चिंतित हैं, तो विशेषज्ञ की सलाह लेना न भूलें।
कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए आप निम्न बातों का पालन करें -
कोलेस्ट्रॉल के टेस्ट में कई पैरामीटर होते हैं। टोटल कोलेस्ट्रॉल या TC लगभग 200 mg/dL से कम होना चाहिए। इससे अधिक होना खतरे की घंटी साबित हो सकती है।
कोलेस्ट्रॉल बढ़ने आपको निम्न खाद्य पदार्थों से दूरी बनाने की सलाह दी जाती है -
कोलेस्ट्रॉल बढ़ने से आपको निम्न बीमारियां हो सकती हैं -
डिमेंशिया होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि -
डिमेंशिया वाले व्यक्ति कभी भी अकेले नहीं रह सकता है, क्योंकि उन्हें खास देखभाल की आवश्यकता होती है। इसलिए सहारे और देखभाल के लिए उनके साथ कोई न कोई ज़रूर होना चाहिए।
अधिकतम 65 वर्ष के बाद अल्जाइमर की समस्या उत्पन्न हो सकती है, लेकिन कभी-कभी 40-50 वर्ष की उम्र में भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है।
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