पीसीओडी में अंडाशय में छोटे सिस्ट बनते हैं और यह हल्की समस्या है, जबकि पीसीओएस हार्मोन असंतुलन वाली गंभीर बीमारी है, जो गर्भधारण में दिक्कत करती है। PCOD लाइफस्टाइल से ठीक होती है, PCOS में दवा चाहिए।
हर सुबह जागने के बाद जब आईने में चेहरा देखते हुए बालों का झड़ना, वजन बार-बार बढ़ना, पिंपल्स छुपाने की कोशिश या अचानक पीरियड्स मिस होने की चिंता सामने आती है, तो अक्सर महिलाएं इन्हें आम लक्षण समझ कर नजरअंदाज कर देती हैं। यह ना जाने कितने ही महिलाओं के लिए सामान्य सी बात हो गई है।
कई बार इन्हीं लक्षणों को नजरअंदाज करते-करते हालात वहां पहुंच जाते हैं कि न तो शरीर साथ देता है और न ही मन। बहुत महिलाएं यह महसूस करती हैं कि "शायद मैं ही अकेली जूझ रही हूं।" लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में हर 5 में से 1 महिला इन समस्याओं का सामना कर रही है। PCOD और PCOS, यह दो नाम, जिनमें फर्क जानना आपकी सेहत और मातृत्व दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
अगर इन शब्दों से परहेज़ किया या डरा गया, तो कई बार ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशियां, सुकून और आत्म-विश्वास को खो देती है। आज ही सही फैसला लें, समझें, जानें और इलाज शुरू करें। इस स्थिति में एक अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श और इलाज बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।
इन दोनों में अंतर को समझने के लिए आपको दोनों के अर्थ को पहले समझना होगा। चलिए सबसे पहले दोनों को एक-एक करके समझते हैं -
पीसीओडी यानी Polycystic Ovarian Disease, एक ऐसी स्थिति है, जिसमें महिलाओं के अंडाशय में कई अपरिपक्व अंडे (Immature eggs) इकट्ठे होकर छोटे-छोटे सिस्ट का रूप ले लेते हैं। यह समस्या मुख्यतः लाइफस्टाइल, डाइट, मोटापा और हार्मोनल असंतुलन के कारण होती है। यह कोई रेयर बीमारी नहीं है। आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में लगभग 10% महिलाएं इससे प्रभावित हैं। पीसीओडी के लक्षणों में अनियमित पीरियड्स, मुंहासे, अत्यधिक बाल, बालों का झड़ना, वजन बढ़ना, गर्भधारण में दिक्कत और मूड स्विंग्स शामिल हो सकते हैं।
पीसीओएस, यानी Polycystic Ovary Syndrome, एक मेटाबोलिक डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर में पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) आवश्यकता से ज्यादा बनने लगते हैं, जिससे ओव्यूलेशन रुक सकता है और प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। यह स्थिति पीसीओडी की तुलना में ज्यादा गंभीर मानी जाती है और इससे आगे चलकर डायबिटीज, दिल की बीमारी या यहां तक कि गर्भाशय का कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
PCOS की शिकार महिलाएं अपने शरीर के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ती हैं — पीरियड्स का बंद हो जाना, यूट्रस में सिस्ट, वजन में असामान्य बदलाव और गर्भधारण की संभावनाओं में कमी, इन्हें रोज़ का हिस्सा बन जाता है।
पैरामीटर |
पीसीओडी |
पीसीओएस |
मुख्य समस्या |
ओवरी में कई इमैच्योर अंडे का एकत्र होना, छोटे सिस्ट बनना |
हार्मोनल व मेटाबोलिक असंतुलन, ओवरी पूरी तरह प्रभावित |
गंभीरता |
यह कम गंभीर स्थिति है जिसमें लाइफस्टाइल सही करने पर स्थिति संभल सकती है। |
यह ज्यादा गंभीर स्थिति है जिसमें इलाज और रेगुलर डॉक्टरी देखभाल जरूरी होता है। |
प्रेग्नेंसी पर असर |
असर कम होता है, लेकिन अधिकतर मामलों में गर्भधारण संभव है। |
इसमें ज्यादा असर होता है, जिसके कारण बांझपन, गर्भपात, प्रीटर्म डिलीवरी का रिस्क होता है। |
इलाज |
जीवन शैली में बदलाव, दवाइयों से मदद मिल सकती है। |
मेडिकल प्रबंधन, हार्मोन थेरेपी, जरूरत पर सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। |
दीर्घकालिक खतरे |
सामान्यतः इसका कोई गंभीर खतरा नहीं होता है। |
डायबिटीज, हार्ट डिज़ीज़, हाई बीपी, एंडोमेट्रियल कैंसर हो सकता है। |
PCOD और PCOS की स्थिति में कुछ सामान्य लक्षण उत्पन्न होते हैं। हम उन्हीं लक्षणों को दो अलग-अलग भाग में बांट रहे हैं और बता रहे हैं कि PCOD और PCOS दोनों ही स्थिति में किस प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं -
इन दोनों ही स्थितियों में हार्मोनल असंतुलन होना सामान्य है, लेकिन चलिए समझते हैं कि इसके पीछे के क्या कारण होते हैं -
PCOD/PCOS की जांच के लिए डॉक्टर आपके लक्षणों को समझते हैं और उसी के अनुसार निम्न कदमों को अपनाते हैं -
कभी-कभी डॉक्टर मानसिक स्वास्थ्य का भी आकलन करते हैं। कई महिलाएं अपने मानसिक दर्द को छुपा लेती हैं, इसलिए इसकी जांच होना आसान नहीं होता है।
पीसीओडी और पीसीओएस की स्थिति में इलाज कई कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है। डॉक्टर दवाओं से पहले डाइट, लाइफस्टाइल और एक्सरसाइज पर ध्यान देने की सलाह देते हैं। चलिए सबसे पहले समझते हैं कि जीवनशैली में बदलाव कौन से होंगे -
जब दवाएं और जीवनशैली में बदलाव कार्य नहीं करते हैं, तो सर्जरी (लेप्रोस्कोपिक ड्रिलिंग) का सुझाव दिया जाता है। वहीं मानसिक स्वास्थ्य के लिए डॉक्टर सुझाव देते हैं कि वह थेरेपी, और हेल्थ ग्रुप जॉइन करें। इस स्थिति में फैमिली से सपोर्ट भी ज़रूरी है।
निम्न स्थितियों में डॉक्टर से मिलने की सलाह हम आपको देंगे -
आज हर पांचवीं भारतीय महिला हार्मोनल बदलाव, वजन बढ़ना और मातृत्व को लेकर अनजानी आशंकाओं से जूझ रही है। जरूरत है लक्षणों को सही पहचान के साथ तुरंत इलाज की, क्योंकि जितनी जल्दी लक्षणों पर ध्यान दिया जाएगा, जांच करवाएंगे, उतनी जल्दी सेहत, मानसिक सुकून और मां बनने का सपना साकार हो पाएगा।
यदि आपके मन में डर, शर्म या निराशा का थोड़ा भी एहसास आता है, तो याद रखें—PCOD, PCOS की शिकार लाखों महिलाएं इलाज और सही जानकारी से आज सुपरवुमन बन चुकी हैं। इसलिए लक्षणों को पहचानें और तुरंत इलाज के सभी विकल्पों पर हमारे अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञों से बात करें।
नहीं, दोनों में लक्षण मिलते-जुलते हैं पर गंभीरता और दीर्घकालिक खतरे अलग है। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो पीसीओडी एक हार्मोनल विकार है और पीसीओएस की स्थिति में गर्भावस्था की स्थिति प्रभावित होती है, जो कि एक ज्यादा खतरनाक स्थिति है।
हां, ओवुलेशन रुकने और हार्मोनल असंतुलन के कारण PCOS प्रेगनेंसी के रास्ते में रुकावट डालता है। इसके साथ गर्भपात का जोखिम भी ज्यादा रहता है।
जी हां, PCOD में लाइफस्टाइल पर ज्यादा फोकस किया जाता है, जबकि PCOS में मेडिकल ट्रीटमेंट भी प्रमुख इलाज का विकल्प है।
PCOD में डाइट और एक्सरसाइज से इस स्थिति को आसानी से मैनेज किया जा सकता है। वहीं PCOS में दवाओं के साथ लाइफस्टाइल बदलाव अनिवार्य होता है।
बिल्कुल, PCOS में भविष्य में डायबिटीज, दिल की बीमारी, कैंसर का रिस्क अधिक होता है।
भारत में PCOS/PCOD के फैलने की दर लगभग 3.7% से लेकर 22.5% तक है। कुछ क्षेत्रों में यह संख्या और अधिक है। WHO के अनुसार, दुनिया की 70% महिलाएं इनकी डायग्नोसिस से अंजान रहती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं—मोटापा, टीनएज आदतें, और अनुवांशिकता, इंडियन युवतियों को ज्यादा खतरे में डालती है।
Written and Verified by:
Consultant - Obstetrics & Gynecology Exp: 24 Yr
Obstetrics & Gynecology
Dr. Ritu Das is a Consultant in Obstetrics & Gynecology Dept. at CMRI, Kolkata with over 24 years of experience. She specializes in laparoscopic surgery, end-suturing, and managing high-risk obstetric cases.
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