जब थायराइड हार्मोन यानी ट्राईआयोडोथायरोनिन (Triiodothyronine) या थायरोक्सिन (Thyroxine) के स्तर में असंतुलन या उतार-चढ़ाव होता है, तो उस स्थिति को मेडिकल भाषा में थायराइड रोग कहा जाता है। वर्तमान में यह समस्या तेजी से फैल रही है। थायराइड रोग पुरुष और महिला दोनों को ही समान रूप से प्रभावित कर रहा है, लेकिन पुरुषों की तुलना में यह महिलाओं में अधिक आम है।
चलिए इस ब्लॉग से हम महिलाओं में थायराइड की समस्या के बारे में विस्तार से जानते हैं, जिससे आप समय पर थायराइड जैसी गंभीर समस्या का इलाज करवा पाएं।
सबसे पहले समझते हैं कि थायराइड क्या है? गर्दन के निचले भाग में स्थित तितली के आकार के ग्लैंड को मेडिकल भाषा में थायराइड कहा जाता है। इसका काम शरीर की ढेरों आवश्यक गतिविधियों को कंट्रोल करना है जैसे कि भोजन को ऊर्जा में बदलना आदि।
थायराइड ग्लैंड का कार्य ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी3) और थायरोक्सिन (टी4) हार्मोन का निर्माण करना है और इन दोनों हार्मोन को ही थायराइड हार्मोन कहा जाता है। यह दोनों ही हार्मोन मिलकर हमारे शरीर के लिए निम्नलिखित कार्य करते हैं -
मुख्य रूप से थायराइड दो प्रकार के होते हैं -
हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड हार्मोन का निर्माण अधिक मात्रा में होता है और हाइपोथायरायडिज्म में हार्मोन का उत्पादन कम होता है। जब भी हमारे शरीर में हार्मोन का संतुलन बिगड़ता है, तो हमारे शरीर के वजन में भी काफी उतार चढ़ाव देखने को मिलता है। जिससे थायराइड की समस्या उत्पन्न होती है।
इससे पहले यह समझना होगा कि महिलाओं में थायराइड की समस्या क्यों होता है? महिलाओं में थायराइड के अनेक कारण होते हैं जैसे वायरल संक्रमण की चपेट में आना, लंबे समय तक तनाव यानी स्ट्रेस में रहना, डिलीवरी के बाद शरीर में बदलाव आना, शरीर में आयोडीन की कमी होना, और महिला के शरीर में हार्मोनल असंतुलन होना आदि। इन कारणों के साथ-साथ कुछ जोखिम कारक भी हैं। महिलाओं में थायराइड की समस्या बढ़ने से गर्दन में सूजन, दर्द, और सांस लेने में तकलीफ होती है। इसके साथ-साथ कई बार महिलाओं का फर्टिलिटी साइकिल भी गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
थायराइड रोग से जूझ रही महिला खुद में अनेक लक्षणों का अनुभव करती है, जिसकी मदद से थायराइड रोग का संकेत मिल सकता है और वह समय पर इसका इलाज करा सकती हैं। चूंकि थायराइड ग्लैंड में थायराइड हार्मोन का निर्माण आवश्यकता से अधिक बढ़ या घट जाता है, ऐसे में दोनों स्थिति में लक्षण अलग-अलग होते हैं। चलिए दोनों को एक-एक करके समझते हैं।
हाइपोथायराइडिज्म से पीड़ित महिलाओं में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं -
हाइपोथायरायडिज्म की तरह ही हाइपरथायरायडिज्म के भी कुछ लक्षण होते हैं जैसे -
ध्यान रखने वाली बात यह है कि कुछ मामलों में ऊपर दिए गए लक्षण अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं के कारण भी हो सकते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि यदि आप खुद में इन लक्षणों को अनुभव करती हैं, तो तुरंत एंडोक्राइनोलॉजिस्ट या फिर थायराइड विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श करें।
बहुत ही कम मामलों में थायराइड की समस्या कैंसर का रूप लेती है। ऐसा अक्सर तब होता है जब डीएनए में कुछ परिवर्तन होता है। हालांकि इस स्थिति के बारे में भी लोगों को पता होना चाहिए। महिलाओं में थायराइड कैंसर के निम्नलिखित लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं -
यह सारे लक्षण गंभीर स्वास्थ्य समस्या की तरफ संकेत करते हैं। यदि आप इन लक्षणों को महसूस करती हैं, तो तुरंत परामर्श लें।
थायराइड की नार्मल रेंज महिलाओं और पुरुषों में एक समान ही होती है। दोनों में ही नार्मल रेंज 0.4 mU/L से 4.0 mU/L के बीच होती है। नॉर्मल रेंज में फर्क सिर्फ उम्र का होता है। 18 से 50 साल के लोगों में थायराइड का स्तर करीब 0.5 – 4.1 mU/L के बीच होता है। वहीं दूसरी तरफ 51-70 साल के लोगों में यह स्तर 0.5 से 4.5 mU/L के करीब होता है।
महिलाओं में थायराइड का प्रभाव जानने से पहले हमें यह समझना होगा कि जो महिला थायराइड रोग से जूझ रही है उनके समग्र स्वास्थ्य पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मुख्य रूप से थायराइड रोग के कारण महिला के पीरियड के समय में बहुत तेजी से बदलाव आता है। हाइपरथायराइडिज्म या हाइपोथायराइडिज्म ओवुलेशन को भी प्रभावित कर सकता है। कुछ मामलों में यह ओवुलेशन को पूर्ण रूप से बंद भी कर सकता है।
थायराइड रोग के कारण ओवरी यानी अंडाशय में सिस्ट तो बनते ही हैं, लेकिन प्रेगनेंसी के दौरान एम्ब्र्यो को नुकसान भी पहुंच सकते हैं। थायराइड हार्मोन की कमी के कारण गर्भपात, समय से पहले डिलीवरी, स्टिलबर्थ यानी डिलीवरी से पहले शिशु की मृत्यु होना, पोस्टपार्टम हेमरेज आदि का खतरा भी बढ़ जाता है।
विशेषज्ञ का यह भी मानना है कि थायराइड रोग के कारण 40 वर्ष से पहले मेनोपॉज आ सकता है, जिसमें पीरियड्स आना बंद हो जाता है। वहीं थायराइड के कारण हार्मोन में उतार-चढ़ाव आता है, जिससे पीरियड लेट आते हैं, जो कभी-कभी मेनोपॉज के समान ही लगते हैं। इसलिए यदि पीरियड्स में अनियमितता, एमेनोरिया (पीरियड्स का न आना) जैसे लक्षण दिखे, तो तुरंत हमसे बात करें।
थायराइड रोग के इलाज के लिए डॉक्टर सबसे पहले उसके स्तर को सामान्य करने का सुझाव देते हैं। ऐसा करने के विभिन्न कारण होते हैं। थायराइड को ठीक करने के लिए निम्नलिखित इलाज के विकल्पों पर विचार किया जा सकता है -
निदान के परिणाम के आधार पर ही डॉक्टर इलाज के विकल्प का सुझाव देते हैं। इसलिए लक्षणों के अनुभव होते ही एंडोक्राइनोलॉजिस्ट से परामर्श लें।
महिलाओं में थायराइड बढ़ने के कारण उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि थायराइड ग्लैंड का आकार बढ़ना, वजन कम होना, घबराहट और चिड़चिड़ापन होना, तनाव महसूस करना, नींद में दिक्कतें आना और आंखों में जलन होना आदि।
इसका सटीक जवाब देना मुश्किल है, क्योंकि यह पूरी तरह से थायराइड रोग के प्रकार, गंभीरता, महिला की उम्र और समग्र स्वास्थ्य, उपचार के प्रकार आदि पर निर्भर करता है।
थायराइड में वजन बढ़ाने के लिए मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त करना होगा। इसके लिए नियमित व्यायाम करें और स्वस्थ आहार लें। व्यायाम से शरीर में कैलोरी बर्न होगी जिससे वजन कम हो जाएगा। अपने आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा की संतुलित मात्रा अवश्य रखें।
थायराइड टेस्ट में रक्त परीक्षण होता है, जो थायराइड ग्लैंड के द्वारा उत्पादित हार्मोन के स्तर को रक्त में मापा जाता है। इस टेस्ट के लिए आपको लैब में अपना ब्लड सैंपल देना होगा।
थायराइड टेस्ट तब करना चाहिए जब आप थायराइड से संबंधित लक्षणों का सामना करें, जैसे अचानक वजन बढ़ना या घटना, थकान, बालों का झड़ना, ठंड लगना, या कब्ज। थायराइड टेस्ट प्रेगनेंसी, प्रसव के बाद, या किसी अन्य हार्मोनल परिवर्तन के दौरान भी किया जा सकता है।
थायराइड जल्द से जल्द ठीक हो सकता है। इसके लिए आपको एक विशेषज्ञ डॉक्टर से मिलना चाहिए और उनके निर्देशों का पालन कड़ाई से करना चाहिए। हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड हार्मोन की दवा दी जाती है। वहीं हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड हार्मोन के उत्पादन को कम करने वाली दवा दी जाती है।
हाइपोथायरायडिज्म की समस्या तब उत्पन्न होती है, जब थायराइड ग्लैंड पर्याप्त थायराइड हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है। वहीं दूसरी तरफ हाइपरथायरायडिज्म की समस्या तब उत्पन्न होती है, जब थायराइड ग्लैंड बहुत अधिक थायराइड हार्मोन का उत्पादन करती है।
सामान्यतः थायराइड के सभी प्रकार रोगी के लिए खतरनाक होते हैं। लेकिन हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति थोड़ी अधिक खतरनाक होती है, क्योंकि इसमें हृदय की समस्याएं, स्ट्रोक, और बोन डेंसिटी भी कम हो सकती है।
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