महिलाओं में थायराइड के लक्षणों में थकान, वजन बढ़ना, मूड स्विंग और पीरियड्स की अनियमितता शामिल हैं। समय रहते पहचान और इलाज से थायराइड को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है।
जब थायराइड हार्मोन यानी ट्राईआयोडोथायरोनिन या थायरॉक्सिन में असंतुलन या उतार-चढ़ाव होता है, तो उस स्थिति को मेडिकल भाषा में थायराइड बीमारी या रोग कहा जाता है। वर्तमान में यह समस्या तेजी से फैल रही है, जो मुख्य रूप से महिलाओं को अपना शिकार बना रही है।
इस ब्लॉग से हम महिलाओं में थायराइड के लक्षणों के बारे में जानेंगे, जिससे आप इसका त्वरित इलाज प्राप्त कर पाएंगे। यहां आपको एक बात का खास ख्याल रखना होगा कि इस ब्लॉग में लिखी गई सारी जानकारी एक सामान्य जानकारी है, इसलिए इस स्वास्थ्य समस्या के इलाज के लिए आप हमारे अनुभवी एवं सर्वश्रेष्ठ एंडोक्राइनोलॉजिस्ट या फिर थायराइड विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श ज़रूर लें।
थायराइड के लक्षण को समझने से पहले हम यह समझते हैं कि थायराइड क्या है? गर्दन के निचले भाग में स्थित तितली के जैसे ग्लैंड को मेडिकल भाषा में थायराइड कहा जाता है। इसका काम शरीर की कई आवश्यक गतिविधियों को कंट्रोल करना है जैसे कि भोजन को ऊर्जा में बदलना, शरीर के लगभग सभी अंग को प्रभावित करना, शरीर के तापमान, मूड और व्यवहार को मैनेज करना इत्यादि।
थायराइड ग्लैंड ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी 3) और थायरोक्सिन (टी4) हार्मोन का निर्माण करती है। इन दोनों हार्मोन को आम बोलचाल की भाषा में थायराइड हार्मोन कहा जाता है। टी3 और टी4 हार्मोन का काम शरीर की अनेक गतिविधियों को कंट्रोल करना है।
यह हार्मोन कैलोरी खपत को कंट्रोल करके वजन को घटने या बढ़ने में मदद करते हैं। दिल की धड़कन को तेज या धीमा करके उनकी गति को कंट्रोल करते हैं और शरीर का तापमान कम या अधिक करके उसके तापमान को नियंत्रण में रखते हैं, तथा मांसपेशियों के सिकुड़ने की गतिविधि को भी नियंत्रित करते हैं।
चलिए सबसे पहले समझते हैं कि महिलाओं में थायराइड क्यों होता है? महिलाओं में थायराइड के अनेक कारण हैं जैसे कि वायरल संक्रमण की चपेट में आना, लंबे समय तक तनाव यानी स्ट्रेस में रहना, डिलीवरी के बाद शरीर में बदलाव आना, शरीर में आयोडीन की कमी होना, और महिला के शरीर में हार्मोनल असंतुलन होना आदि। यह कारणों के साथ-साथ जोखिम कारक भी है। महिलाओं में थायराइड बढ़ने से गर्दन में सूजन, दर्द, और सांस लेने में तकलीफ होती है। इसके साथ-साथ कई बार महिलाओं का प्रजनन चक्र भी गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
थायरॉयड ग्लैंड मेटाबॉलिज्म, ऊर्जा उत्पादन और समग्र हार्मोनल संतुलन को बैलेंस करने का महत्वपूर्ण कार्य करता है। मुख्य रूप से थायराइड रोग दो प्रकार के होते हैं हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म हैं।
हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड ग्लैंड थायराइड हार्मोन का अधिक उत्पादन करती है, जिससे मेटाबॉलिज्म तेज हो जाता है। इस स्थिति में अन्य लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं जैसे कि -
इन लक्षणों के महसूस होते ही बिना देर किए डॉक्टर से मिलें और इलाज लें। समय पर इलाज होने से हृदय संबंधित समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में शरीर में थायराइड हार्मोन का उत्पादन बहुत कम होता है, जिसके कारण मेटाबॉलिज्म भी धीमा हो जाता है। इस स्थिति में जो भी लक्षण उत्पन्न होते हैं, वह भी धीरे-धीरे ही उत्पन्न होते हैं -
हालांकि दोनों ही स्थिति में कुछ लक्षण एक जैसे हो सकते हैं, इसलिए किसी भी प्रकार के लक्षण को नजरअंदाज किए बिना डॉक्टर से मिलें और इलाज लें। आपके शरीर को आपसे अधिक बेहतर तरीके से कोई नहीं जानता होगा। यदि आपको लक्षण दिखे, तो बिना देर किए डॉक्टर से मिलें और इलाज लें।
बहुत ही कम मामलों में थायराइड की समस्या कैंसर का रूप लेती है। ऐसा अक्सर तब होता है, जब डीएनए में कुछ बदलाव आ जाए। हालांकि इस स्थिति के बारे में भी लोगों को पता होना चाहिए। महिलाओं में थायराइड कैंसर के निम्नलिखित लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं -
इन लक्षणों के महसूस होने पर तुरंत एक अनुभवी डॉक्टर से परामर्श लें।
थायराइड की नार्मल रेंज महिलाओं और पुरुषों में एक समान ही होती है। दोनों में ही नार्मल रेंज 0.4 mU/L से 4.0 mU/L के बीच होती है। नॉर्मल रेंज में फर्क सिर्फ उम्र का होता है। 18 से 50 साल के लोगों में थायराइड का स्तर करीब 0.5 – 4.1 mU/L के बीच होना चाहिए। वहीं दूसरी तरफ 51-70 साल के लोगों में में यह स्तर 0.5 से 4.5 mU/L के करीब होना चाहिए।
थायराइड से जुड़ी समस्याएं
जब थायराइड ग्लैंड ज़रूरत से कम या अधिक मात्रा में हार्मोन बनाने लगता है, तो थायराइड से जुड़ी समस्याएं पैदा होती हैं। ऐसा होने पर शरीर के काम करने का संतुलन बिगड़ जाता है। इसके अलावा, थायराइड ग्लैंड में कैंसर वाली कोशिकाएं बनने या सूजन होने के कारण हार्मोन में असंतुलन हो जाता है।
जिसके कारण हाइपरथायराइडिज्म, हाइपोथायराइडिज्म और थाइराइड कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड ग्लैंड अधिक सक्रिय हो जाते हैं, जिसके कारण अधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन का निर्माण होने लगता है। हालांकि, हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड ग्लैंड से कम मात्रा में थायराइड हार्मोन का निर्माण होता है।
थायराइड कैंसर एंडोक्राइन कैंसर का सबसे खतरनाक रूप है। उत्तक के आधार पर थायराइड कैंसर को दो भागों में बांटा जा सकता है। इसमें डिफ्रेंशियल थायराइड कैंसर और एनाप्लास्टिक थायराइड कैंसर शामिल हैं।
थायराइड रोग से जूझ रही महिला की समग्र स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है। थायराइड रोग के कारण महिला का यौवन या मासिक धर्म समय से जल्दी या बहुत देरी से आ सकता है। हाइपरथायराइडिज्म या हाइपोथायराइडिज्म ओवुलेशन को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ मामलों में यह ओवुलेशन को पूर्ण रूप से बंद भी कर सकते हैं।
अंडाशय से अंडा रिलीज होकर फैलोपियन ट्यूब में जाने की प्रक्रिया को ओवुलेशन कहते हैं। थायराइड रोग के कारण ओवरी यानी अंडाशय में सिस्ट बन सकते हैं, गर्भावस्था के दौरान भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है। थायराइड हार्मोन की कमी के कारण गर्भपात, समय से पहले डिलीवरी, स्टिलबर्थ यानी डिलीवरी से पहले शिशु की मृत्यु होना, पोस्टपार्टम हेमरेज आदि का खतरा भी बढ़ जाता है।
विशेषज्ञ का यह भी मानना है कि थायराइड रोग के कारण 40 वर्ष से पहले मेनोपॉज आ सकता है। इतना ही नहीं, थायराइड हार्मोन में उतार-चढ़ाव के कारण हल्का या हेवी पीरियड्स, अनियमित पीरियड्स साइकिल, पीरियड्स का न आना (एमेनोरिया) आदि की समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं।
थायराइड कैसे ठीक होता है?
थायराइड रोग के इलाज के लिए डॉक्टर सबसे पहले उसके स्तर को सामान्य करने का सुझाव देते हैं। ऐसा करने के विभिन्न कारण है। थायराइड को ठीक करने के लिए निम्नलिखित इलाज के विकल्पों पर विचार किया जा सकता है -
निदान के परिणाम के आधार पर ही डॉक्टर इलाज के विकल्प का सुझाव देते हैं। इसलिए लक्षणों के अनुभव होते ही डॉक्टर से परामर्श लें।
महिलाओं में थायराइड बढ़ने के कारण उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि थायराइड ग्लैंड का आकार बढ़ना, वजन कम होना, घबराहट और चिड़चिड़ापन होना, तनाव महसूस करना, नींद सोने में दिक्कतें आना और आंखों में जलन होना आदि।
इसका सटीक जवाब देना मुश्किल है, क्योंकि यह पूरी तरह से थायराइड रोग के प्रकार, गंभीरता, महिला की उम्र और समग्र स्वास्थ्य, उपचार के प्रकार आदि पर निर्भर करता है।
थायराइड में वजन बढ़ाने के लिए मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त करना होगा। इसके लिए, नियमित व्यायाम करें और स्वस्थ आहार लें। व्यायाम से शरीर में कैलोरी बर्न होगी जिससे वजन कम होने वह जाएगा। अपने आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा की संतुलित मात्रा अवश्य रखें।
थायराइड टेस्ट में रक्त परीक्षण होता है, जो थायराइड ग्लैंड के द्वारा उत्पादित हार्मोन के स्तर को रक्त में मापता है। इस टेस्ट के लिए, आपको डॉक्टर के कार्यालय में अपना ब्लड सैंपल देना होगा।
थायराइड टेस्ट तब कराना चाहिए जब आप थायराइड से संबंधित लक्षणों का सामना करें, जैसे अचानक वजन बढ़ना या घटना, थकान, बालों का झड़ना, ठंड लगना, या कब्ज। थायराइड टेस्ट गर्भावस्था, प्रसव के बाद, या किसी अन्य हार्मोनल परिवर्तन के दौरान भी किया जा सकता है।
थायराइड जल्द-जल्द ठीक हो सकता है। इसके लिए आपको एक विशेषज्ञ डॉक्टर से मिलना चाहिए और उनके निर्देशों का पालन कड़ाई से करना चाहिए। हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड हार्मोन की दवा दी जाती है। वहीं हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति में थायराइड हार्मोन के उत्पादन को कम करने वाली दवा दी जाती है।
हाइपोथायरायडिज्म की समस्या तब उत्पन्न होती है, जब थायराइड ग्लैंड पर्याप्त थायराइड हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है। वहीं दूसरी तरफ हाइपरथायरायडिज्म की समस्या तब उत्पन्न होती है, जब थायराइड ग्लैंड बहुत अधिक थायराइड हार्मोन का उत्पादन करती है।
सामान्यतः थायराइड के सभी प्रकार रोगी के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। लेकिन हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति थोड़ी अधिक खतरनाक होती है, क्योंकि इसमें हृदय की समस्याएं, स्ट्रोक, और हड्डी का द्रव्यमान कम हो सकती है।
गर्म पानी पीने से थायराइड फंक्शन पर सीधा असर नहीं पड़ता है, लेकिन यह पाचन और पूर्ण हाइड्रेशन में सहायता कर सकता है। हालांकि उचित हाइड्रेशन मेटाबॉलिज्म को सपोर्ट करता है, जो थायराइड हार्मोन से प्रभावित होता है।
वयस्क महिलाओं के लिए, सामान्य थायराइड स्तर में TSH: 0.4–4.0 mIU/L, T4: 0.8–1.8 ng/dL, और T3: 2.3–4.2 pg/mL होता है। उम्र और स्वास्थ्य स्थितियों के आधार पर यह स्तर बदल सकता है। नियमित जांच आपकी मदद कर सकता है।
थायराइड की स्थिति में एक प्रकार के डाइट प्लान को फॉलो करने की सलाह दी जाती है जैसे कि -
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