अगर आपको लंबे समय से खांसी, सांस लेने में दिक्कत, बलगम में खून या सीने में दर्द की समस्या है, तो आपको फेफड़ों और सांस की नली की जांच के लिए ब्रोंकोस्कोपी करानी चाहिए। आमतौर पर डॉक्टर्स फेफड़ों की सही जांच और इलाज के लिए ब्रोंकोस्कोपी की सलाह देते हैं। इससे फेफड़ों के इन्फेक्शन, सूजन, ट्यूमर या कैंसर की जांच, सांस की नली में फंसी हुई चीजों को बाहर निकालने और बीमारी का सही पता लगाने में मदद मिलती है।
हमारे शरीर में फेफड़े और श्वसन तंत्र(सांस लेने का सिस्टम) बहुत जरूरी अंग हैं। ये हर सांस के साथ हमारे पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करते हैं। लेकिन, कई बार कुछ लोगों को लंबे समय तक खांसी, सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द या बलगम में खून आने जैसी परेशानियां हो जाती हैं। ऐसी समस्याओं को हल्के में न लें और तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। फेफड़ों के डॉक्टर आपके फेफड़ों की जांच करके बीमारी का पता लगाएंगे और सही समय पर इलाज शुरू कर पाएंगे।
फेफड़ों की जांच के लिए ब्रोंकोस्कोपी नाम का एक खास टेस्ट किया जाता है। इसमें डॉक्टर एक पतली, कैमरे वाली नली (जिसे ब्रोंकोस्कोप कहते हैं) को नाक या मुंह के जरिए फेफड़ों और सांस की नली के अंदर डालकर सीधे देख पाते हैं और बीमारी को पहचान पाते हैं। आइए जानते हैं कि ब्रोंकोस्कोपी क्या होती है, इसके क्या फायदे हैं, यह कैसे की जाती है और इसके बाद क्या देखभाल करनी होती है।
ब्रोंकोस्कोपी एक खास तरह का मेडिकल टेस्ट है, जिसकी मदद से डॉक्टर आपके गले, सांस की नली और फेफड़ों के अंदर की चीजों को देखकर पता लगाते हैं कि वहां सब ठीक है या नहीं। इस टेस्ट के लिए एक पतली, लचीली नली का इस्तेमाल होता है, जिसे ब्रोंकोस्कोप कहते हैं। इस नली के सिरे पर एक छोटा-सा कैमरा और लाइट लगी होती है, जिससे फेफड़ों के अंदर देखा जाता है।
इस प्रक्रिया में डॉक्टर ब्रोंकोस्कोप को नाक या मुंह से धीरे-धीरे गले और फेफड़ों तक ले जाते हैं। कैमरे की मदद से वे देखते हैं कि कहीं कोई इन्फेक्शन, सूजन, ट्यूमर, खून बहना या सांस की नली में रुकावट तो नहीं है। अगर डॉक्टर को लगता है कि बीमारी का सही से पता नहीं चल पा रहा है, तो वे फेफड़े के अंदर से टिशू (ऊतक) का एक छोटा-सा टुकड़ा निकालकर जांच के लिए भेजते हैं। इसे लंग बायोप्सी कहते हैं, जिससे बीमारी की एकदम सही जानकारी मिल सके।
आपको बता दें कि ब्रोंकोस्कोपी जाँच के भी कई प्रकार होते हैं। हर प्रकार का इस्तेमाल अलग-अलग स्थिति और जरूरत के हिसाब से किया जाता है। आइए जानते हैं ब्रोंकोस्कोपी के प्रकारों के बारे में-
यह सबसे आम और हल्की ब्रोंकोस्कोपी होती है। इसमें एक पतली और मुड़ने वाली नली का इस्तेमाल किया जाता है। इस टेस्ट के दौरान मरीज को हल्का बेहोश किया जाता है ताकि उसे दर्द न हो। लचीली ब्रोंकोस्कोपी में डॉक्टर फेफड़ों के अंदर से टिशू का एक छोटा-सा टुकड़ा बायोप्सी के लिए ले सकते हैं या फेफड़ों से बलगम बाहर निकाल सकते हैं। यह जाँच आमतौर पर सांस से जुड़ी समस्याओं के लिए की जाती है।
इस जांच में एक सीधी और मजबूत नली का इस्तेमाल किया जाता है और इसके लिए डॉक्टर पूरा एनेस्थीसिया देते हैं। डॉक्टर यह जांच तब करते हैं जब उन्हें लगता है कि किसी की सांस की नली में कुछ फंस गया है, कोई बड़ा ट्यूमर या रुकावट है, या फेफड़ों से ज्यादा खून बह रहा है।
इस जांच में ब्रोंकोस्कोपी और अल्ट्रासाउंड दोनों का इस्तेमाल एक साथ किया जाता है। इसकी मदद से डॉक्टर फेफड़ों के गहरे हिस्सों और लिम्फ नोड्स को साफ-साफ देख पाते हैं। आमतौर पर यह जांच टीबी या कैंसर जैसी बीमारियों का पता लगाने के लिए की जाती है।
यह एक ऐसा तरीका है जिसमें शरीर के अंदर नली नहीं डाली जाती। इसमें डॉक्टर सीटी स्कैन की मदद से फेफड़ों और सांस की नली की 3डी इमेज निकालते हैं।
यह सबसे आधुनिक ब्रोंकोस्कोपी होती है, जिसमें फेफड़ों के कैंसर को शुरुआती स्टेज में ही पकड़ा जा सकता है।
ब्रोंकोस्कोपी एक खास तरह की जांच है और इसकी मदद से डॉक्टर पता लगाते हैं कि आपके फेफड़ों या सांस की नली में कोई परेशानी तो नहीं है। इस जांच की मदद से डॉक्टर सही बीमारी का पता लगा पाते हैं और फिर सही इलाज शुरू करते हैं। आमतौर पर डॉक्टर ब्रोंकोस्कोपी की सलाह कुछ खास स्थितियों में देते हैं, जैसे कि-
अगर किसी को हफ्तों से लगातार खांसी आ रही है और उसके साथ खून आता है, तो डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए।
अगर किसी को सांस लेने में दिक्कत होती है या सांस लेते समय अजीब आवाज आती है, तो डॉक्टर ब्रोंकोस्कोपी करने की सलाह दे सकते हैं।
अगर किसी के फेफड़ों के एक्स-रे और सीटी स्कैन में चीजें साफ नजर नहीं आती हैं, तो डॉक्टर ब्रोंकोस्कोपी करके ज्यादा साफ जानकारी हासिल करते हैं।
अगर किसी को टीबी, निमोनिया या फंगल इन्फेक्शन होता है, तो इन मामलों में ब्रोंकोस्कोपी की जाती है।
अगर सांस की नली में कोई चीज चली जाती है या गाढ़ा बलगम जमा हो जाता है, जिसकी वजह से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है, तो ब्रोंकोस्कोपी के जरिए उसे निकाला जा सकता है।
यदि डॉक्टर को फेफड़ों के अंदर ट्यूमर या कैंसर का शक होता है, तो वे ब्रोंकोस्कोपी करवाते हैं। उसके बाद बायोप्सी जांच की जाती है।
अगर डॉक्टर ब्रोंकोस्कोपी कराने की सलाह देते हैं, तो इससे पहले आपको कुछ जरूरी तैयारी कर लेनी चाहिए। ब्रोंकोस्कोपी टेस्ट से पहले किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
आमतौर पर ब्रोंकोस्कोपी की प्रक्रिया बहुत आसान और दर्द रहित होती है। इस जाँच को करने के लिए डॉक्टर कुछ चरणों का पालन करते हैं-
ब्रोंकोस्कोपी केवल एक जांच नहीं है, बल्कि कई मामलों में यह इलाज करने के काम भी आती है। इसके फायदे भी कई हैं।
वैसे तो ब्रोंकोस्कोपी एक सुरक्षित जांच होती है, लेकिन कभी-कभी कुछ गंभीर जोखिम किसी-किसी को हो सकते हैं। ब्रोंकोस्कोपी के बाद कुछ लोगों को थोड़ी असुविधा हो सकती है, जो अक्सर 1–2 दिनों में अपने आप ठीक हो जाती है। अगर प्रक्रिया के बाद गले में खराश होना, आवाज बैठना, हल्की खांसी आना, बुखार आना शामिल है, तो आपको तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
अगर ब्रोंकोस्कोपी के बाद आपको सांस लेने में तकलीफ़ होती है, सीने में दर्द होता है, खून की खांसी आती है, तेज बुखार आता है, आवाज बैठ जाती है, निगलने में परेशानी होती है, तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
ब्रोंकोस्कोपी के बाद आपको थोड़ी देखभाल की जरूरत होती है। हॉस्पिटल से बाहर निकलकर आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि-
आमतौर पर फेफड़ों या सांस की नली से जुड़ी किसी भी समस्या की जांच के लिए डॉक्टर ब्रोंकोस्कोपी करने की सलाह देते हैं। यह जांच बिना कट या टांके के होती है। इस सुरक्षित और जल्दी होने वाली जांच के दौरान डॉक्टर को बीमारी का पता चल जाता है और वे सही समय पर सही इलाज शुरू कर देते हैं।
ब्रोंकोस्कोपी 30 से 60 मिनट तक चलती है।
ब्रोंकोस्कोपी से फेफड़ों के इन्फेक्शन, ट्यूमर, सूजन, सांस नली में रुकावट, फेफड़ों में बलगम या फंसी हुई किसी चीज का पता लगाया जाता है।
यह एक दर्दरहित जांच है, लेकिन आपको कुछ असहजता महसूस हो सकती है।
यह एक सुरक्षित प्रक्रिया है, लेकिन इसमें कुछ जोखिम भी शामिल हैं। कुछ लोगों को जांच के बाद ब्लीडिंग, इन्फेक्शन, बुखार जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
हां, ब्रोंकोस्कोपी के दौरान एनेस्थीसिया दिया जाता है, लेकिन यह मरीज की स्थिति और ब्रोंकोस्कोपी के प्रकार पर निर्भर करता है।
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