अल्जाइमर रोग एक प्रकार का डिमेंशिया है, जो याददाश्त, सोचने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है। इसके लक्षण धीरे-धीरे बढ़कर इतने गंभीर हो जाते हैं कि वह रोजमर्रा के कामों में बाधा डाल सकते हैं।
जब अचानक आपको अपनों के नाम या बातें, रोजमर्रा के छोटे काम या अपना पता याद न रहे, तो सोचिए आपके परिवार को कैसा महसूस होगा। यही है अल्जाइमर रोग का डरावना पहलू, जहां आपकी पहचान, रिश्तों और आत्मनिर्भरता से धीरे-धीरे आपको दूर कर देता है।
भारत में न जाने हर साल लाखों बुजुर्ग याददाश्त जाने, व्यवहार में बदलाव या आत्मनिर्भरता खत्म होने जैसे लक्षण लेकर डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश को पता ही नहीं कि यह सब "अल्जाइमर" के कारण हो रहा है और कितने समय से वह इन सबका सामना कर रहे हैं।
यदि आपके परिवार में कोई लगातार चीज़ें भूल रहा है, बातों को बार-बार दोहरा रहा है या व्यवहार में अचानक बदलाव आ रहा है, तो इसे उम्र का साधारण असर समझकर न टालें। सही समय पर पहचान और इलाज से इस बीमारी का असर काफी हद तक कम किया जा सकता है और एक अच्छा जीवन व्यतीत किया जा सकता है। यदि आपके परिवार में कोई भी इस समस्या का सामना कर रहा है, तो बिना देर किए एक अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट से मिलें और इलाज लें।
अल्जाइमर रोग दिमाग की कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाने वाली बीमारी है, जिसे सबसे आम "डिमेंशिया" (संज्ञानात्मक कमी/भुलक्कड़पन) का कारण माना जाता है। यह बदलाव आमतौर पर 65 वर्ष के बाद ज्यादा देखने को मिलता है, लेकिन कुछ में कम उम्र में भी दिख सकते हैं। डब्ल्यूएचओ के 2024 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लगभग 5.5 करोड़ से अधिक लोग डिमेंशिया या भूलने वाली बीमारी से ग्रसित हैं, जिनमें 60–70% अल्जाइमर के मामले हैं। वहीं दूसरी तरफ भारत में 40 लाख से ज्यादा लोग अल्जाइमर से प्रभावित हैं और यह संख्या हर दशक दोगुनी हो रही है।
अल्जाइमर में मस्तिष्क में दो विशेष प्रोटीन ("एमाइलॉइड प्लाक्स" और "टाउ टैंगल्स") अनियमित तरीके से जमने लगते हैं, जिससे तंत्रिका कोशिकाओं के बीच का संपर्क और उनका कामकाज प्रभावित होता है। इसके कारण धीरे-धीरे दिमाग का आकार भी सिकुड़ जाता है, जिससे लोगों को याद रखने की क्षमता भी काफी हद तक प्रभावित होती है।
आज तक अल्जाइमर का सटीक कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन कुछ प्रमुख कारण है, जिससे यह समस्या उत्पन्न हो सकती है -
समय के साथ याददाश्त का कमजोर होना साधारण बात है, लेकिन यदि यह दिक्कत आपकी रोजमर्रा की जिंदगी को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है, तो विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।
अल्जाइमर एक ऐसी स्थिति है, जिसमें लक्षण स्पष्ट रूप से नजर आ जाते हैं। चलिए उन लक्षणों को जानते हैं, जो बताते हैं कि अल्जाइमर की शुरुआत हो गई है -
जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, रोजमर्रा के कपड़े पहनना, नहाना, शौचालय उपयोग जैसी सामान्य चीजें भी मुश्किल लगने लगती हैं।
अल्जाइमर एक ऐसी समस्या है, जिसके बहुत सारे जोखिम कारक हो सकते हैं जैसे कि -
यह सारे जोखिम कारक सामान्य जोखिम कारक हैं और इनसे कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं, इसलिए समय-समय पर डॉक्टरी सलाह बहुत ज्यादा अनिवार्य है।
कई बार परिवार वाले ही शुरुआती बदलाव पहचानते हैं। यदि इन लक्षणों में से कुछ लंबे समय से दिखें, तो डॉक्टर से परामर्श जरूरी है। डॉक्टर कुछ जांच का सुझाव देते हैं या स्वयं जांच करते हैं जैसे कि -
शुरुआती पहचान से शारीरिक, भावनात्मक एवं आर्थिक बोझ कम हो सकता है और मरीज तथा उसके परिवार की तैयारी समय पर हो जाती है।
हालांकि अल्जाइमर का पूरी तरह इलाज (Alzheimer ka ilaaj) या रोकथाम आज भी संभव नहीं है, लेकिन जीवनशैली में बदलाव और हेल्थ मैनेजमेंट की मदद से इस रोग की शुरुआत को टाला या इसके असर को कम किया जा सकता है -
याददाश्त केवल जीवन की कहानी नहीं, जीवन की आत्मा है। अल्जाइमर का समय रहते पता चलना व जागरूकता ही सबसे बड़ा इलाज है। परिवार व समाज में सहारा, डॉक्टर की सलाह, और सही इलाज से इस बीमारी के असर को कई गुना कम किया जा सकता है।
अगर आप अपने आप में या घर में ऐसे लक्षण देखें, तो बिना हिचक डॉक्टर से संपर्क करें। यह एक नया, सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने का पहला कदम हो सकता है।
नहीं, अल्जाइमर अभी तक पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता। लेकिन शुरुआत में दवाओं और लाइफस्टाइल बदलावों से लक्षणों को कंट्रोल और इस रोग की प्रगति को धीमा किया जा सकता है।
डिमेंशिया एक सिंड्रोम है जिसमें सोच, याददाश्त या व्यवहार बिगड़ता है, और अल्जाइमर इसका सबसे आम कारण है। हर अल्जाइमर के मरीज को डिमेंशिया होता है, लेकिन हर डिमेंशिया अल्जाइमर नहीं।
अल्जाइमर अधिकतम 65 के बाद दिखता है, पर कुछ मामलों में 40–50 की उम्र में भी हो सकता है। परिवार में मेडिकल हिस्ट्री, ज़्यादा उम्र, और महिलाओं में जोखिम ज्यादा है।
योग, ध्यान, मानसिक सक्रियता और जीवनशैली में सुधार से अल्जाइमर का जोखिम काफी हद तक कम किया जा सकता है।
अगर कोई बार-बार भूलने लगे, रोजमर्रा के फैसलों में दिक्कत हो, या व्यवहार में बदलाव हो तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं।
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