हवा के बहाव में अचानक गिरावट और उसके साथ प्रदूषण में बढ़ोतरी ने सांस संबंधी बीमारियों को बढ़ावा दिया है। इस दौरान अक्सर डॉक्टर चेतावनी देते हैं कि जैसे-जैसे तापमान गिरता है और प्रदूषण का स्तर बढ़ता है, जिससे फेफड़ों में इन्फेक्शन का खतरा भी बढ़ता है। फेफड़ों में संक्रमण के साथ अस्थमा, सीओपीडी और सांस की अन्य बीमारियां भी उत्पन्न होती हैं। यदि आप भी इस स्थिति का सामना कर रहे हैं, तो हम आपको सलाह देंगे कि तुरंत हमारे पल्मोनोलॉजी विशेषज्ञ डॉक्टरों से मिलें।
फेफड़ों में संक्रमण को अंग्रेजी भाषा में लंग इंफेक्शन कहा जाता है। हाल के समय में वायु प्रदूषण लंग इन्फेक्शन का मुख्य कारण बन गया है, जिसे निमोनिया भी कहा जाता है। उच्च वायु प्रदूषण में अस्थमा या सीओपीडी के रोगियों को अधिक सावधान रहने की आवश्यकता होती है।
ठंड के दौरान कोलकाता का मौसम थोड़ा ज्यादा गंभीर हो जाता है। इस दौरान हवा नहीं चलती है और ठंड भी बहुत ज्यादा होती है, जिससे मौसम में स्मॉग का कोहराम होता है। इस समय बड़ी संख्या में बच्चे 'हाइपर-एक्टिव एयरवेज डिजीज' या ब्रोन्कियल ट्यूब की सूजन से प्रभावित होते हैं, जिससे अस्थमा या सांस लेने जैसी गंभीर समस्या होती है। यहां तक की पिछले 3-4 वर्षों में भी ऐसा देखा गया है कि जिन्हें अस्थमा की कभी शिकायत नहीं थी, वह भी अब इस मौसम में अस्थमा जैसे गंभीर रोग से पीड़ित होने लगे हैं। नवंबर से फरवरी का समय बहुत ज्यादा संवेदनशील होता है। स्थिति की गंभीरता को समझ कर जल्द से जल्द हमारे पल्मोनोलॉजिस्ट से संपर्क करें। यह एक चिकित्सा आवश्यक स्थिति है और इसके लक्षण दिखने पर तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है।
श्वसन संक्रमण होने पर निम्नलिखित लक्षण उत्पन्न होते हैं -
फेफड़ों में संक्रमण के पीछे दो कारण है - बैक्टीरिया और वायरस। जब हवा प्रदूषित होती है और रोगी सांस लेता है संक्रमण वाले रोगाणु फेफड़ों में चले जाते हैं। यह तत्व फेफड़ों में मौजूद छोटे-छोटे थैलियों में जमा हो जाते हैं। धीरे-धीरे यह संक्रमण हमारे शरीर का प्रयोग करके बढ़ने लगते हैं, जो अंततः संक्रमण का कारण बन जाते हैं।
इसके साथ-साथ हमें यह समझना होगा कि फेफड़ों का संक्रमण एक संक्रामक रोग है। अर्थात, यह व्यक्ति के खांसने, बोलने, छींकने आदि से भी दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी हैं जो फेफड़ों में संक्रमण का कारण साबित हो सकते हैं -
फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर भी फेफड़ों में संक्रमण से पीड़ित होते हैं। इसके अतिरिक्त हाल-फिलहाल में वायु प्रदूषण के कारण भी फेफड़े में संक्रमण के मामले बढ़ने लगे हैं। वायु प्रदूषण में कुछ प्रदूषक तत्व होते हैं, जो मुख्य रूप से फेफड़ों के संक्रमण का मुख्य कारण साबित होते हैं।
मुख्यतः प्रदूषक चार प्रकार के होते हैं - पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ओजोन और सल्फर डाइऑक्साइड। विशेष रूप से इन तत्वों के कारण हमारे फेफड़ों में समस्या होती है।
फेफड़ों में इन्फेक्शन के इलाज के लिए सबसे पहले आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। लेकिन जब तक आप डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं, तब तक हम आपको सलाह देंगे कि आप निम्नलिखित निर्देशों का पालन करें। इससे आपको बहुत लाभ होगा।
फेफड़ों में संक्रमण के इलाज के लिए डॉक्टर अक्सर एंटी-अस्थमा दवाएं देते हैं। इन दवाएं का मुख्य कार्य आपकी श्वसन प्रणाली को बेहतर बनाना है और फेफड़ों में जमे फंगस और बलगम को बाहर निकालने में मदद करना है। हालांकि यह दवाएं बहुत प्रभावी है और तेजी से असर दिखाती हैं, लेकिन फिर भी हमारे डॉक्टर हमेशा कहते हैं कि किसी को भी बिना प्रिस्क्रिप्शन के इन दवाओं को नहीं लेना चाहिए। इससे स्थिति और गंभीर हो सकती है।
जब आप फेफड़ों में समस्या के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं, तो वह सबसे पहले आपकी स्थिति का विश्लेषण करते हैं और फिर वह आपके फेफड़ों की स्थिति को देख कर दवाओं का सुझाव देते हैं। फंगस के संक्रमण को रोकने के लिए डॉक्टर दवाओं का सुझाव दे सकते हैं। वहीं कुछ गंभीर मामलों में सर्जरी की आवश्यकता होती है। सर्जरी में क्षतिग्रस्त भाग को निकाल दिया जाता है, क्योंकि इससे अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
एक मिनट के दौरान जितनी बार सांस ली जाती है, उसे श्वसन दर कहते हैं। श्वसन दर को मापने के लिए, व्यक्ति को रेस्टिंग पोजीशन पर रहना चाहिए। एक मिनट के दौरान व्यक्ति ने कितनी बार सांस ली है, उसी से ही श्वसन दर को मापा जाता है। सामान्य श्वसन दर वयस्कों में 12 से 20 प्रति मिनट होती है। इससे ऊपर का दर असामान्य की श्रेणी में आता है।
हाँ, वायु प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारियां होती हैं। बीते कुछ वर्षों में वायु प्रदूषण के कारण सांस संबंधी मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है। वायु प्रदूषण से होने वाली सांस संबंधी बीमारियों में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों का कैंसर शामिल है।
फेफड़ों की क्षति का इलाज संभव है, लेकिन इसका जवाब क्षति की सीमा पर भी निर्भर करता है। यदि फेफड़ों की क्षति ज्यादा गंभीर नहीं है, तो इलाज दवाओं से संभव है। यदि स्थिति अधिक गंभीर है, तो लंग ट्रांसप्लांट की आवश्यकता पड़ती है।
हां, फेफड़ों के टीबी का इलाज संभव है। फेफड़ों के टीबी का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है। यदि टीबी का इलाज समय पर किया जाए, तो यह पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। इसके लिए तुरंत डॉक्टर से मिलें और इलाज की तरफ अपना पहला कदम उठाए।
श्वसन तंत्र से संबंधित कई बीमारियां हैं। चलिए उन्हीं में से कुछ प्रमुख बीमारियां के बारे में जानते हैं -
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