पॉलीसिस्टिक किडनी रोग (PKD) एक जेनेटिक रोग है, जिसके कारण किडनी में कई सारी सिस्ट या छालों का निर्माण हो जाता है। इसके कारण गुर्दे के आकार भी बढ़ जाता है, जिससे इसकी कार्यक्षमता को भारी क्षति होती है।
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग (PKD) एक जेनेटिक रोग है, जिसके कारण किडनी में कई सारी सिस्ट या छालों का निर्माण हो जाता है। इसके कारण गुर्दे के आकार भी बढ़ जाता है, जिससे इसकी कार्यक्षमता को भारी क्षति होती है।
चलिए इस ब्लॉग की मदद से पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के कारण समेत कई महत्वपूर्ण चीजों के बारे में जानते हैं, जो कि हर महिला को पता होनी चाहिए। पीकेडी के संबंध में किसी भी प्रकार की सहायता के लिए तुरंत एक अनुभवी नेफ्रोलॉजिस्ट से मिलें और स्वस्थ रहें।
जैसा कि हमने आपको पहले बताया है कि पॉलीसिस्टिक किडनी रोग (Polycystic kidney disease) मुख्य रूप से एक जेनेटिक डिजीज है, जिसका सीधा संबंध पेशेंट के जीन से है। इस रोग में शरीर की वह टिश्यू प्रभावित होती हैं, जो किडनी का निर्माण करती है, जिसकी वजह से किडनी की सतह पर छाले बन जाते हैं जो इसके आकार और वजन के बढ़ने का कारण भी बनता है।
सामान्य तौर पर पीकेडी पुरुष और महिलाओं को एक समान ही प्रभावित करता है और कई मामलों में यह किडनी फेल्योर का मुख्य कारण भी साबित हुआ है। यदि किडनी की विफलता की स्थिति उत्पन्न होती भी है, तो इलाज के लिए किडनी का ट्रांसप्लांट या डायलिसिस एक मुख्य इलाज के रूप में सामने आता है।
आंकड़ों की माने तो किडनी ट्रांसप्लांट और डायलिसिस के सभी मरीजों में लगभग 5 प्रतिशत मरीज पॉलीसिस्टिक किडनी रोग (Polycystic kidney disease) वाले होते हैं।
क्रोनिक किडनी डिजीज के लक्षण की तरह ही पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज के भी कुछ लक्षण होते हैं, जिसका अनुभव रोगी को बहुत लंबे समय से होता आया है। पॉलिसिस्टिक किडनी रोग की स्थिति में निम्न लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं -
यह सारे लक्षण किसी भी उम्र के व्यक्ति में दिख सकते हैं। यहां तक की बच्चों को भी यह समस्या परेशान कर सकती है। आमतौर पर पॉलिसिस्टिक किडनी रोग का शिकार 50-60 वर्ष या कभी-कभी वृद्ध लोग भी हो सकते हैं। जैसे-जैसे सिस्ट का आकार बढ़ता है, लक्षण दिखने शुरु हो जाते हैं।
अधिकतर मामलों में पॉलिसिस्टिक किडनी रोग के पीछे का मुख्य कारक फैमिली हिस्ट्री ही है। जैसे किसी भी बच्चे को शारीरिक एवं मानसिक विशेषता उनके माता-पिता से मिलती है, उसी प्रकार कुछ रोग भी जीन के द्वारा बच्चों तक पहुंचते हैं।
इसके अतिरिक्त कुछ मामलों में पहले से मौजूद किडनी की अन्य गंभीर समस्याएँ पॉलिसिस्टिक किडनी रोग का कारण साबित हो सकती हैं। इस रोग के कारण, इसके प्रकार के आधार पर भी निर्भर करते हैं जो कि तीन प्रकार के हैं -
नेशनल किडनी फाउंडेशन के अनुसार पीकेडी के सभी मामलों में से लगभग 80-90% मामले इस प्रकार के होते हैं। 30 से 40 वर्ष के आयु वाले लोग इस रोग से अधिक प्रभावित होते हैं। लेकिन कुछ मामलों में यह रोग छोटी उम्र के बच्चों को भी प्रभावित करता है।
यह एडीपीकेडी की तुलना में बहुत कम लोगों को प्रभावित करता है। ARPKD को आप एक गंभीर समस्या भी मान सकते हैं, जिसमें लक्षण बच्चपन में ही या जन्म के समय ही दिखाई देने लग जाते हैं। मुख्य रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों में यह समस्या आम है।
यदि बच्चों में, दोनों पेरेंट के जीन मिलते हैं, तो ही उन्हें ऑटोसोमल रिसेसिव पीकेडी की समस्या होगी। ARPKD के भी चार प्रकार होते हैं -
यह कोई जेनेटिक डिजीज नहीं है। मुख्य रूप से जो लोग पहले से ही किसी दूसरे किडनी की समस्या का सामना कर रहे हैं, वही इस रोग का सामना करते हैं। यह रोग किडनी फेल्योर वाले रोगियों में अधिक आम है।
यदि माता-पिता में से किसी एक को भी पॉलिसिस्टिक किडनी रोग है, तो बच्चे को इस रोग के होने की संभावना लगभग 50% होगी। वहीं यदि दोनों ही माता-पिता से बच्चों को असामान्य जीन मिलते हैं, तो प्रत्येक बच्चे को पीकेडी होने की संभावना लगभग 25% हो जाएगी। वहीं कुछ मामलों में ऐसा भी देखा गया है कि किसी को भी यह रोग नहीं होता है, फिर भी बच्चे को यह समस्या हो जाती है। ऐसे मामलों में जेनेटिक म्यूटेशन इसका मुख्य कारण होता है।
मुख्य रूप से पॉलीसिस्टिक किडनी रोग का इलाज स्थिति और जटिलताओं का प्रबंधन है। हाई ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करना पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के इलाज का सबसे महत्वपूर्ण पहलू होता है। पॉलीसिस्टिक गुर्दा रोग उपचार के विकल्प इस प्रकार हैं -
हालांकि टोलवैप्टन दवा के कारण लीवर को नुकसान हो सकता है, जो इसका एक मुख्य साइड इफेक्ट भी है। वहीं जब किडनी की कार्यक्षमता को लगभग 90% का नुकसान हो जाए या किडनी फेलियर की स्थिति उत्पन्न हो तो डॉक्टर डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट का सुझाव देते हैं। ऐसे में डॉक्टर एक या फिर दोनों ही किडनी को निकालने का सुझाव देते हैं।
पॉलीसिस्टिक किडनी रोग में आहार एक मुख्य भूमिका निभाता है। इस संबंध में आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होगा जैसे कि -
इसके अतिरिक्त किडनी से संबंधित समस्या के इलाज और निदान के लिए गुर्दे के विशेषज्ञ से तुरंत मिलने की सलाह दी जाती है।
पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज (पीकेडी) एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें किडनी में तरल पदार्थ से भरे थैली या सिस्ट बन जाते हैं। यह सिस्ट किडनी के सामान्य कार्यक्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं और समय के साथ किडनी फेल्योर का कारण भी बन सकते हैं।
पीकेडी के शुरुआती चरणों में अक्सर कोई लक्षण नहीं होते हैं। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, लक्षणों में पेट में दर्द, बार-बार पेशाब आना, रक्त में प्रोटीन, उच्च रक्तचाप और थकान शामिल हो जाते हैं।
वर्तमान में पीकेडी का कोई स्थाई इलाज नहीं है। हालांकि, जीवनशैली में बदलाव, दवाएं और अन्य उपचारों से बीमारी की प्रगति को धीमा किया जा सकता है और जटिलताओं को कम किया जा सकता है।
Written and Verified by:
Dr. Bibhas Ranjan Kundu is a Consultant Urologist & HOD of Urology at CMRI, Kolkata with 40+ years of experience. He specializes in LASER treatment for stones & prostate, reconstructive urology (urethra & bladder), and complex cases like urinary cancers and strictures.
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