त्वचा का पीला पड़ना, बार-बार पसीना आना, दूध पीने में समस्या, वजन न बढ़ना, इत्यादि कुछ ऐसे लक्षण हैं, जो नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के लक्षण हैं, जिनका अनुभव होने पर तुरंत इलाज लें।
जब किसी कपल के जीवन में कोई बच्चा आता है, तो वह उनके जीवन में एक नई उम्मीद के साथ आता है। पर सोचिए, क्या होगा अगर वो नन्हा-सा शिशु, जिसे आपने नौ महीने उम्मीदों से पाला, जन्म लेते ही सांस लेने के लिए जूझता नजर आए? क्या होगा जब उसे दूध पीने में कठिनाई आएगी? इन्डियन पीडिएट्रिक जर्नल के अनुसार भारत में हर साल लगभग 1 लाख से ज्यादा नवजात शिशु जन्मजात दिल की बीमारी के साथ पैदा होते हैं।
इस स्थिति में सबसे बड़ा दुख यह है कि इन सभी मामलों में से लगभग 30% मामलों में बच्चों को सही समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता है। यहां जरूरी है कि आप नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के लक्षण पहचानें और एक भी लक्षण दिखे तो उसे नजरअंदाज न करें। इसलिए सबसे आवश्यक है सही जानकारी, जिसके लिए हमने इस ब्लॉग को लिखा है।
अक्सर जब बच्चा सामान्य दिख रहा है, तो हम मान लेते हैं कि बच्चा सामान्य ही है। इसके कारण माता-पिता को भी यही लगता है कि सब ठीक है। लेकिन आपको यह समझना होगा कि नवजात शिशु के दिल की बीमारी कई बार बिना किसी बाहरी संकेत के छुपी रह सकती है। WHO के अनुसार, हर 100 में से 8 बच्चे दिल से जुड़ी किसी समस्या के साथ जन्म लेते हैं। इनमें से कई को जन्म के समय या पहले कुछ हफ्तों में लक्षण नजर आने लगते हैं, लेकिन सही जानकारी के अभाव होने पर माता-पिता इसे मामूली समझ बैठते हैं।
चलिए विस्तार से जानते उन लक्षणों के बारे में जो आपके शिशु के दिल की सेहत के लिए अलार्म बेल हो सकते हैं -
यह सारे मुख्य लक्षण है, जो दर्शाते हैं कि आपके बच्चे के दिल के साथ कुछ असमान्य है।
आज की लाइफस्टाइल और कुछ मेडिकल स्थितियां दिल की बीमारी के रिस्क को बढ़ाती हैं। इंडियन हार्ट जर्नल के अनुसार, गर्भावस्था में शराब, स्मोकिंग या वायरल संक्रमण (जैसे रूबेला) नवजात शिशुओं में हृदय रोग के प्रमुख कारण हैं। इसके अतिरिक्त इनके अन्य कारण भी हो सकते हैं जैसे कि -
यह सारे कारक मिलकर नवजात शिशु के दिल के विकास को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए हमेशा प्रयास किया जाना चाहिए कि आप एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाएं और इन सभी कारकों को खुद से दूर ही रखें।
जन्म से पहले ही कुछ टेस्ट जैसे कि फीटल इकोकार्डियोग्राम से पता लगाया जा सकता है कि बच्चे का दिल का स्वास्थ्य कैसे है। जन्म के बाद यह सारे तरीके इस्तेमाल हो सकते हैं -
यह सारे टेस्ट आपके और आपके बच्चे के हृदय स्वास्थ्य की जांच आसानी से कर सकते हैं। इसलिए यदि डॉक्टर ने इनका सुझाव दिया है, तो बिना देर किए टेस्ट कराएं और आवश्यकता पड़ने पर इलाज लें।
आपके लिए यह जानना सबसे ज्यादा जरूरी है कि हर नवजात शिशु के रोग खतरनाक नहीं होते हैं। कई मामूली हृदय रोग अपने आप ठीक हो जाते हैं। लेकिन कुछ मामलों में दवाइयां, कैथेटर या सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। आज भारत में बड़े-बड़े हृदय के अस्पताल जैसे कि बीएम बिरला अस्पताल, AIIMS, इत्यादि, दिल के रोग का इलाज 95% से अधिक सफलता दर के साथ कर रहे हैं। सही वक्त पर इलाज आपके बच्चे की जिंदगी बदल सकता है। इलाज के लिए कुछ विकल्प हैं, जिनका उपयोग यह अस्पताल करते हैं जैसे कि -
इलाज के बाद नवजात शिशुओं की देखभाल में लापरवाही करना बच्चों के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है।
यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा किसी भी हृदय रोग के साथ जन्म न लें, तो सबसे पहला यह कार्य करें कि आप निम्न बातों का पालन करें -
नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के लक्षणों को नजरअंदाज करना उनकी सेहत के साथ समझौता करना है। यदि आप जागरूक हैं और सही समय पर विशेषज्ञ से सलाह लेते हैं, तो आपके नन्हें बच्चे को एक स्वस्थ और सामान्य जीवन मिल सकता है। याद रखें, समय रहते हुए जांच और इलाज से कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। माता-पिता के रूप में आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने बच्चे में उत्पन्न होने वाले हर छोटे बदलाव को गंभीरता से लें। यदि आपको कोई भी संदेह हो, तो देर न करें — आज ही विशेषज्ञ से संपर्क करें और अपने बच्चे को स्वस्थ भविष्य दें।
जी हां! अच्छी अल्ट्रासाउंड टेक्नोलॉजी से प्रेगनेंसी 18-24 हफ्ते में पता चल सकता है कि बच्चों में जन्म से पहले दिल की बीमारी है।
हां! कमजोर दिल से थकान जल्दी होती है, जिसके कारण बच्चे को कुछ भी करने का मन नहीं करता है और वह दूध भी नहीं पीता है।
नीचे जिन लक्षणों के बारे में हम आपको बताने वाले हैं, उनके अनुभव होने पर तुरंत चाइल्ड कार्डियोलॉजिस्ट से मिलें -
हां! ये लक्षण बहुत सामान्य है। यदि आपके बच्चे में भी यह लक्षण दिखते हैं, तो तुरंत कॉल करें और परामर्श लें।
बिलकुल! समय पर इलाज और मॉनिटरिंग से बच्चा सामान्य जिंदगी जी सकता है और दिल की समस्या को हमेशा के लिए मैनेज कर सकता है।
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