नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के लक्षण: जो कभी न छोड़ें अनदेखा
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नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के लक्षण: जो कभी न छोड़ें अनदेखा

Table of Contents
  1. क्यों छिपे रहते हैं नवजात शिशुओं के दिल के रोग?
  2. नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के प्रमुख लक्षण - नजरअंदाज न करें
  3. क्यों होता है नवजात शिशुओं में हृदय रोग?
  4. नवजात शिशु में दिल की बीमारी की पहचान कैसे करें?
  5. नवजात शिशुओं में हृदय रोग का इलाज और देखभाल
    1. नवजात शिशुओं में हृदय रोग की देखभाल
  6. दिल की बीमारी से बचाव और सावधानियां
  7. निष्कर्ष
  8. अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न
    1. क्या जन्म से पहले दिल की बीमारी पकड़ में आ सकती है?
    2. क्या दिल की बीमारी से बच्चा दूध नहीं पीता?
    3. मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरे बच्चे को दिल की बीमारी है?
    4. क्या दिल की बीमारी से शिशु को ज्यादा पसीना आता है?
    5. क्या दिल के मरीज नवजात सामान्य जीवन जी पाते हैं?

Summary

त्वचा का पीला पड़ना, बार-बार पसीना आना, दूध पीने में समस्या, वजन न बढ़ना, इत्यादि कुछ ऐसे लक्षण हैं, जो नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के लक्षण हैं, जिनका अनुभव होने पर तुरंत इलाज लें।

जब किसी कपल के जीवन में कोई बच्चा आता है, तो वह उनके जीवन में एक नई उम्मीद के साथ आता है। पर सोचिए, क्या होगा अगर वो नन्हा-सा शिशु, जिसे आपने नौ महीने उम्मीदों से पाला, जन्म लेते ही सांस लेने के लिए जूझता नजर आए? क्या होगा जब उसे दूध पीने में कठिनाई आएगी? इन्डियन पीडिएट्रिक जर्नल के अनुसार भारत में हर साल लगभग 1 लाख से ज्यादा नवजात शिशु जन्मजात दिल की बीमारी के साथ पैदा होते हैं। 

इस स्थिति में सबसे बड़ा दुख यह है कि इन सभी मामलों में से लगभग 30% मामलों में बच्चों को सही समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता है। यहां जरूरी है कि आप नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के लक्षण पहचानें और एक भी लक्षण दिखे तो उसे नजरअंदाज न करें। इसलिए सबसे आवश्यक है सही जानकारी, जिसके लिए हमने इस ब्लॉग को लिखा है। 

क्यों छिपे रहते हैं नवजात शिशुओं के दिल के रोग?

अक्सर जब बच्चा सामान्य दिख रहा है, तो हम मान लेते हैं कि बच्चा सामान्य ही है। इसके कारण माता-पिता को भी यही लगता है कि सब ठीक है। लेकिन आपको यह समझना होगा कि नवजात शिशु के दिल की बीमारी कई बार बिना किसी बाहरी संकेत के छुपी रह सकती है। WHO के अनुसार, हर 100 में से 8 बच्चे दिल से जुड़ी किसी समस्या के साथ जन्म लेते हैं। इनमें से कई को जन्म के समय या पहले कुछ हफ्तों में लक्षण नजर आने लगते हैं, लेकिन सही जानकारी के अभाव होने पर माता-पिता इसे मामूली समझ बैठते हैं।

नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के प्रमुख लक्षण - नजरअंदाज न करें

चलिए विस्तार से जानते उन लक्षणों के बारे में जो आपके शिशु के दिल की सेहत के लिए अलार्म बेल हो सकते हैं - 

  • त्वचा या होंठ का नीला पड़ना: अगर शिशु के होंठ, जीभ या नाखून नीले पड़ने लगते हैं, तो इसका मतलब है कि उसके खून में ऑक्सीजन सही से नहीं पहुंच रहा है। यह हृदय रोग के लक्षण में सबसे अहम संकेत माना जाता है।
  • बार-बार पसीना आना: क्या आपका शिशु दूध पीते ही पसीना-पसीना हो जाता है? यह कमजोर दिल का लक्षण हो सकता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, कंजेस्टिव हार्ट फेल्योर में बच्चों को पसीना आना दिल की बीमारी का सबसे मुख्य लक्षण है। 
  • दूध पीने में दिक्कत: अगर शिशु दूध पीते वक्त बार-बार रुकता है, जल्दी थक जाता है या चिड़चिड़ा हो जाता है, तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं। यह संकेत हो सकता है कि आपके बच्चे के साथ कुछ चीजें ठीक नहीं है।
  • वजन न बढ़ना: सामान्य नवजात शिशु का हर हफ्ते करीब 150-200 ग्राम वजन बढ़ता है। यदि आपके बच्चे की ग्रोथ नहीं हो रही है, तो यह दिल की बीमारी की तरफ इशारा करता है।
  • दिल की धड़कन असामान्य होना: कभी-कभी आप बच्चे के सीने पर हाथ रखकर महसूस कर सकते हैं कि उसकी धड़कन तेज या बहुत धीमी है। यह भी हृदय रोग के मुख्य लक्षणों में गिना जाता है।

यह सारे मुख्य लक्षण है, जो दर्शाते हैं कि आपके बच्चे के दिल के साथ कुछ असमान्य है। 

क्यों होता है नवजात शिशुओं में हृदय रोग?

आज की लाइफस्टाइल और कुछ मेडिकल स्थितियां दिल की बीमारी के रिस्क को बढ़ाती हैं। इंडियन हार्ट जर्नल के अनुसार, गर्भावस्था में शराब, स्मोकिंग या वायरल संक्रमण (जैसे रूबेला) नवजात शिशुओं में हृदय रोग के प्रमुख कारण हैं। इसके अतिरिक्त इनके अन्य कारण भी हो सकते हैं जैसे कि - 

  • माता-पिता में जेनेटिक बीमारी
  • मां को डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर
  • दवाइयों का बिना डॉक्टर की सलाह के सेवन
  • पॉल्यूशन और पोषण की कमी

यह सारे कारक मिलकर नवजात शिशु के दिल के विकास को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए हमेशा प्रयास किया जाना चाहिए कि आप एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाएं और इन सभी कारकों को खुद से दूर ही रखें।

नवजात शिशु में दिल की बीमारी की पहचान कैसे करें?

जन्म से पहले ही कुछ टेस्ट जैसे कि फीटल इकोकार्डियोग्राम से पता लगाया जा सकता है कि बच्चे का दिल का स्वास्थ्य कैसे है। जन्म के बाद यह सारे तरीके इस्तेमाल हो सकते हैं - 

  • पल्स ऑक्सीमीट्री टेस्ट: शिशु के हाथ-पैर में सेंसर लगाकर खून में ऑक्सीजन का लेवल देखा जाता है।
  • इकोकार्डियोग्राम: दिल के अंदरूनी स्ट्रक्चर को जांचने के लिए अल्ट्रासाउंड जैसा टेस्ट होता है।
  • फिजिकल एग्जाम: डॉक्टर स्टेथोस्कोप से दिल की आवाज सुनते हैं।
  • ब्लड टेस्ट और X-ray: गंभीर मामलों में डीप जांच की आवश्यकता पड़ सकती है। 

यह सारे टेस्ट आपके और आपके बच्चे के हृदय स्वास्थ्य की जांच आसानी से कर सकते हैं। इसलिए यदि डॉक्टर ने इनका सुझाव दिया है, तो बिना देर किए टेस्ट कराएं और आवश्यकता पड़ने पर इलाज लें।

नवजात शिशुओं में हृदय रोग का इलाज और देखभाल

आपके लिए यह जानना सबसे ज्यादा जरूरी है कि हर नवजात शिशु के रोग खतरनाक नहीं होते हैं। कई मामूली हृदय रोग अपने आप ठीक हो जाते हैं। लेकिन कुछ मामलों में दवाइयां, कैथेटर या सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। आज भारत में बड़े-बड़े हृदय के अस्पताल जैसे कि बीएम बिरला अस्पताल, AIIMS, इत्यादि, दिल के रोग का इलाज 95% से अधिक सफलता दर के साथ कर रहे हैं। सही वक्त पर इलाज आपके बच्चे की जिंदगी बदल सकता है। इलाज के लिए कुछ विकल्प हैं, जिनका उपयोग यह अस्पताल करते हैं जैसे कि - 

  • ऑबसर्वेशन और निगरानी: हल्के मामलों में तत्काल इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। समय के साथ बच्चे ठीक होने लग जाते हैं। 
  • दवाएं: कुछ दवाएं अनियमित दिल की धड़कन जैसे लक्षणों को नियंत्रित करने या हृदय की कार्यप्रणाली में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
  • पेसमेकर इम्पलांटेशन: पेसमेकर या कोई अन्य कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर (ICD) का उपयोग हृदय ताल को नियंत्रित करने और जटिलताओं का प्रबंधन करने में आपकी मदद कर सकता है। 
  • कार्डियक कैथीटेराइजेशन: यह इलाज का विकल्प एक रिपेयर तकनीक है, जिसमें दिल के उस भाग को रिपेयर किया जाता है, जो प्रभावित है। 
  • सर्जरी: रिपेयर या इम्पांटेशन से जब स्थिति का इलाज नहीं हो पाता है, तो ओपन-हार्ट सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।
  • हृदय प्रत्यारोपण: गंभीर मामलों में जहां अन्य उपचार प्रभावी नहीं होते हैं, वहां हार्ट ट्रांसप्लांट पर विचार किया जा सकता है।

नवजात शिशुओं में हृदय रोग की देखभाल

इलाज के बाद नवजात शिशुओं की देखभाल में लापरवाही करना बच्चों के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है। 

  • बच्चे को हल्का, पचने वाला दूध दें।
  • तापमान सामान्य रखें, ठंड या ज्यादा गर्मी से बचाएं।
  • डॉक्टर के चेकअप शेड्यूल को मिस न करें।
  • साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें ताकि संक्रमण न हो।

दिल की बीमारी से बचाव और सावधानियां

यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा किसी भी हृदय रोग के साथ जन्म न लें, तो सबसे पहला यह कार्य करें कि आप निम्न बातों का पालन करें - 

  • स्मोकिंग-ड्रिंकिंग छोड़ें
  • समय पर टीकाकरण करवाएं
  • हेल्दी डाइट लें
  • प्रेगनेंसी चेकअप रेगुलर कराएं

निष्कर्ष

नवजात शिशुओं में दिल की बीमारी के लक्षणों को नजरअंदाज करना उनकी सेहत के साथ समझौता करना है। यदि आप जागरूक हैं और सही समय पर विशेषज्ञ से सलाह लेते हैं, तो आपके नन्हें बच्चे को एक स्वस्थ और सामान्य जीवन मिल सकता है। याद रखें, समय रहते हुए जांच और इलाज से कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। माता-पिता के रूप में आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने बच्चे में उत्पन्न होने वाले हर छोटे बदलाव को गंभीरता से लें। यदि आपको कोई भी संदेह हो, तो देर न करें — आज ही विशेषज्ञ से संपर्क करें और अपने बच्चे को स्वस्थ भविष्य दें।

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या जन्म से पहले दिल की बीमारी पकड़ में आ सकती है?

जी हां! अच्छी अल्ट्रासाउंड टेक्नोलॉजी से प्रेगनेंसी 18-24 हफ्ते में पता चल सकता है कि बच्चों में जन्म से पहले दिल की बीमारी है।

क्या दिल की बीमारी से बच्चा दूध नहीं पीता?

हां! कमजोर दिल से थकान जल्दी होती है, जिसके कारण बच्चे को कुछ भी करने का मन नहीं करता है और वह दूध भी नहीं पीता है।

मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरे बच्चे को दिल की बीमारी है?

नीचे जिन लक्षणों के बारे में हम आपको बताने वाले हैं, उनके अनुभव होने पर तुरंत चाइल्ड कार्डियोलॉजिस्ट से मिलें - 

  • त्वचा का पीला पड़ना
  • बार-बार पसीना आना
  • दूध पीने में समस्या होना
  • वजन न बढ़ना
  • बच्चों में किसी भी प्रकार की ग्रोथ न होना

क्या दिल की बीमारी से शिशु को ज्यादा पसीना आता है?

हां! ये लक्षण बहुत सामान्य है। यदि आपके बच्चे में भी यह लक्षण दिखते हैं, तो तुरंत कॉल करें और परामर्श लें।

क्या दिल के मरीज नवजात सामान्य जीवन जी पाते हैं?

बिलकुल! समय पर इलाज और मॉनिटरिंग से बच्चा सामान्य जिंदगी जी सकता है और दिल की समस्या को हमेशा के लिए मैनेज कर सकता है।

Written and Verified by:

Dr. Shyamajit Samaddar

Dr. Shyamajit Samaddar

Visiting Consultant Exp: 11 Yr

Pediatric Cardiology

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