ऑटिज्म: कारण, लक्षण, बचाव, निदान और उपचार
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ऑटिज्म: कारण, लक्षण, बचाव, निदान और उपचार

Summary

जैसे-जैसे लोगों की जीवनशैली में बदलाव आ रहा है, वैसे-वैसे कई ऐसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं, जिनके बारे में लोगों को सबसे कम पता होता है। ऐसी ही एक बीमारी है ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर।

जैसे-जैसे लोगों की जीवनशैली में बदलाव आ रहा है, वैसे-वैसे कई ऐसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं, जिनके बारे में लोगों को सबसे कम पता होता है। ऐसी ही एक बीमारी है ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum disorder)। पिछले कुछ समय में ऑटिज्म की समस्या में तेजी से वृद्धि देखी गई है। यह समस्या बच्चों को सबसे ज्यादा ट्रिगर करती है, जिसके कारण इस स्थिति के बारे में सही जानकारी होनी बहुत आवश्यक है। यही कारण है कि हम इस ब्लॉग की मदद से बच्चों में ऑटिज्म की समस्या पर मुख्य रूप से बात करने वाले हैं। 

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर क्या है? -

ऑटिज्म एक ऐसा रोग है, जो दिमाग को प्रभावित करता है, जिससे पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आता है। सामान्य तौर पर यह रोग बच्चों को सबसे ज्यादा ट्रिगर करता है। ऑटिज्म की समस्या के कारण कुछ लक्षण दिखने लगते हैं, जिस स्थिति में कुछ इलाज की आवश्यकता हो सकती है। यदि समय रहते इस स्थिति का इलाज नहीं होती है, तो इसके कारण मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। 

दुनिया भर में हर 100 में 1 बच्चा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से पीड़ित है। वहीं कई रिपोर्ट ऐसे भी हैं जिसमें यह पता चला है कि यह समस्या लड़कियों के मुताबिक लड़कों में अधिक आम है। वहीं पिछले कुछ समय में ऑटिज्म से पीड़ित लोगों की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है, जो कि एक चिंता विषय है। 

ऑटिज्म के प्रकार -

तीन अलग-अलग प्रकार के ऑटिज्म है, जो एक व्यक्ति को परेशान कर सकती है। चलिए सभी प्रकारों को एक-एक करके समझते हैं - 

  • ऑटिस्टिक डिसऑर्डर: यह ऑटिज्म स्पेक्ट्रम सिंड्रोम का सबसे गंभीर रूप माना जाता है। इसके कारण मस्तिष्क के विकास से संबंधित समस्या होती है, जिसके कारण दूसरे के साथ मेलजोल और उनके तरीके से सोचने में दिक्कत आती है। 
  • एस्पर्जर सिंड्रोम (Asperger Syndrome): इसमें हल्के लक्षण उत्पन्न होते हैं और इस स्थिति में व्यक्ति को दूसरे लोगों के साथ घुलना-मिलना, बातचीत करना पसंद नहीं होता है और बात करने में भी दिक्कत आती है। 
  • पर्वाइज़िव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर-नॉट ऑदरवाइज़ स्पेसिफाइड (PDD-NOS): यह भी ऑटिज्म स्पेक्ट्रम का एक रूप है, लेकिन यह बाकियों से अलग है। इस प्रकार के ऑटिज्म को आप इसके जांच का एक प्रकार मान सकते हैं। 

ऑटिज्म के लक्षण -

ऑटिज्म की स्थिति में कुछ सामान्य लक्षणों का अनुभव एक व्यक्ति कर सकता है जैसे - 

  • संपर्क और बातचीत करने में कठिनाई
  • भावनाओं को समझने में समस्या
  • बच्चों का देर से बोलना 
  • एक ही शब्द को बार-बार दोहराना
  • बुलाने पर जवाब न देना
  • अकेला रहना
  • आंख न मिला पाना 
  • हर दिन एक ही तरह से बिताना
  • खुद को चोट लगाना या नुकसान पहुंचाना 
  • दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को न समझना या उनकी भावनाओं के प्रति संवेदनशील न होना।

यह सारे लक्षण ऑटिज्म की तरफ संकेत करते हैं। यदि आपको या फिर आपके बच्चों में ऐसी समस्या दिखे, तो तुरंत कोलकाता के बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करें। हम आपकी मदद जरूर करेंगे। 

ऑटिज्म के कारण -

वर्तमान में ऑटिज्म के सटीक कारण अभी भी अज्ञात है। हालांकि अलग-अलग रिसर्च में पता चला है कि यह समस्या कुछ जेनेटिक और पर्यावरणीय कारणों पर निर्भर करते हैं। इसके कारण गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास की प्रगति भी प्रभावित होती है। इसके तीन संभावित कारण होते हैं - 

  • मस्तिष्क के विकास को नियंत्रित करने वाले जीन में गड़बड़ी।
  • सेल्स (कोशिकाएं) और मस्तिष्क के बीच सम्पर्क बनाने वाले जीन में समस्या।
  • प्रेगनेंसी में वायरल इंफेक्शन या हवा में फैले प्रदूषण के कण के संपर्क में आना। 

इस स्थिति के कारण कम हैं, लेकिन इसके कई जोखिम कारक है। नीचे उन बच्चों के बारे में बताया गया है जो ऑटिज्म के खतरे के दायरे में सबसे अधिक होते हैं - 

  • जिन पेरेंट्स का पहला बच्चा ऑटिज्म का शिकार हो गया हो, उनका दूसरा बच्चा भी इस स्थिति का शिकार हो सकता है। 
  • प्रीमैच्योर बच्चे या समय से पहले बच्चे का जन्म।
  • जन्म के समय कम वजन होना।
  • लंबी आयु के बाद माता-पिता बनना।
  • जेनेटिक/ क्रोमोसोमल कंडीशन जैसे, ट्यूबरस स्क्लेरोसिस (Tuberous Sclerosis) या फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम।
  • प्रेगनेंसी के दौरान खाने वाली दवाओं का साइड इफेक्ट।

ऑटिज्म का निदान और इलाज

ऑटिज्म की समस्या के निदान के कई पहलू हैं। चलिए सभी को एक-एक करके समझते हैं - 

डॉक्टर द्वारा मूल्यांकन

  • सबसे पहले माता-पिता से बच्चे के व्यवहार और मानसिक विकास से संबंधित कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं। 
  • इसके बाद बच्चे से बात की जाती है और बच्चे के व्यवहार की जांच होती है। 
  • चिकित्सा उपकरणों का प्रयोग कर बच्चे की संचार, सामाजिक और संज्ञानात्मक क्षमताओं का एनालिसिस होता है। 

यह जांच बच्चों और वयस्कों में एक प्रकार ही होते हैं। बस वयस्कों की स्थिति में माता-पिता के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों से भी बात की जाती है। 

अतिरिक्त परीक्षण

इन सबके अतिरिक्त कुछ अन्य परीक्षण के सुझाव दिए जा सकते हैं जैसे - 

  • जेनेटिक परीक्षण: कुछ मामलों में जेनेटिक टेस्ट की मदद से यह निर्धारित हो सकता है कि जीन में कोई अवांछित परिवर्तन है या नहीं। यदि ऐसा होता है तो ऑटिज्म खतरा सबसे अधिक होता है।
  • इमेजिंग परीक्षण: मस्तिष्क की असामान्यताओं की पहचान करने के लिए एमआरआई या सीटी स्कैन का उपयोग किया जा सकता है। इस टेस्ट की मदद से मस्तिष्क की कई समस्याओं का पता चल सकता है। 

चलिए अब जानते हैं कि ऑटिज्म का क्या इलाज है। सबसे पहले आपको यह समझना पड़ेगा कि ऑटिज्म का कोई स्पष्ट या निश्चित इलाज नहीं है। इस स्थिति के लक्षणों को ठीक करने के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना बहुत अनिवार्य है। 

  • प्रारंभिक चिकित्सा: सामान्यतः छोटी उम्र में ही इस रोग के लक्षण दिखने लग जाते हैं। 2 साल की उम्र में सबसे पहले चिकित्सा हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। इस समय पर इलाज का लाभ यह होगा कि बच्चे का विकास बेहतर होगा और भविष्य में अच्छे परिणाम मिलेंगे। 
  • बिहेवियर थेरेपी: इस थेरेपी की मदद से संचार, व्यवहार कौशल और बोलचाल की मदद से रोगी के व्यवहार में बदलाव आ जाता है। 
  • लैंग्वेज और स्पीच थेरेपी: इस थेरेपी का उपयोग तब होता है जब बच्चे या पेशेंट को कुछ भी बोलने में दिक्कत होती है। 
  • ऑक्यूपेशनल थेरेपी: ऑक्यूपेशनल थेरेपी (ओटी) की मदद से आवश्यक या बुनियादी कौशल सिखाए जाते हैं। लिखने की कला, मोटर स्किल और खुद की देखभाल करने का कौशल।
  • दवा: आमतौर पर ऑटिज्म के इलाज के लिए कोई विशेष दवा नहीं है। हालांकि, ऑटिज्म के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं के इलाज के लिए कुछ दवाएं उपलब्ध हैं जैसे - एंटीसाइकोटिक दवाएं, एंटीडिप्रेसेंट, एंटीसेज़्योर दवाएं, इत्यादि। इन दवाओं से लक्षणों में आराम मिलता है, लेकिन यह अकेला व्यक्ति को ऑटिज्म से ठीक नहीं कर सकता है। इसके लिए दवा से साथ, डॉक्टर के निर्देशों का पालन अच्छे से करना होगा।

ऑटिज्म से बचाव -

वर्तमान में, ऑटिज्म को रोकने का कोई ज्ञात तरीका नहीं है। हालांकि कुछ तरीकों के प्रयोग से स्थिति में सुधार संभव है। जैसे - 

  • धूम्रपान, शराब और नशीली दवाओं से दूरी बनाएं।
  • अच्छा खाएं और स्वस्थ खाएं
  • कुछ टीके जैसे एमएमआर की मदद से ऑटिज्म से संबंधित समस्याओं से बचने के लिए प्रेग्नेंट महिलाओं को यह टीका लगवाना चाहिए था। 
  • मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज कराएं।
  • हवा में मौजूद रसायनों से दूर रहें।
  • धूम्रपान करने वाले लोगों से उचित दूरी बनाएं। 
  • सफाई करते समय सावधानी बरतें और यदि घर में कोई प्रेग्नेंट है तो अधिक सावधान रहें।
  • घर में आरामदायक माहौल बनाएं। 

ऑटिज्म की स्थिति में किसी भी घरेलू उपायों की तरफ अग्रसर न होएं। प्रयास करें कि डॉक्टर से इस स्थिति पर बात करें और इलाज के सभी विकल्पों के बारे में जानें। 

ऑटिज्म से संबंधित अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

 

ऑटिज्म वाले बच्चे कैसे होते हैं?

ऑटिज्म वाले बच्चों में निम्न समस्याएं देखने को मिलती है - 

  • सामाजिक संपर्क और बातचीत में कठिनाई
  • सीमित और दोहराव वाला व्यवहार
  • बोलने में समस्या
  • तेज आवाज, चमकदार रोशनी, या अन्य स्थितियों के प्रति संवेदनशीलता

ऑटिज्म कैसे ठीक होता है?

आपको यह समझना होगा कि इस स्थिति का कोई निश्चित इलाज नहीं है। हालांकि जीवनशैली में बदलाव, कुछ थेरेपी, और दवाओं की मदद से ऑटिज्म की समस्या में सुधार लाया जा सकता है। 

क्या ऑटिज्म का इलाज है?

ऑटिज्म का न ही कोई निश्चित इलाज है और ना ही इसकी कोई निश्चित दवा। हालांकि कुछ थेरेपी और दवाओं की मदद से इस स्थिति का इलाज संभव है। 

ऑटिज्म का निदान कैसे होता है?

ऑटिज्म की जांच फिजिकल एग्जामिनेशन से की जाती है। परामर्श के बाद जेनेटिक टेस्ट का सुझाव भी दिया जा सकता है।

Written and Verified by:

Dr. Ajay Aggarwal

Dr. Ajay Aggarwal

Consultant - Neurosurgery Exp: 25 Yr

Neurosurgery

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