
यदि किसी भी महिला को प्रेगनेंसी से पहले डायबिटीज की शिकायत है, तो इस बात की अधिक संभावना है कि वह प्रेगनेंसी के दौरान भी इस समस्या का सामना करे, जो कई सारी जटिलताओं का कारण बन सकता है। गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का प्रबंधन बहुत ज्यादा आवश्यक है, क्योंकि इससे मां और बच्चे दोनों का ही स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
यदि किसी भी महिला को प्रेगनेंसी से पहले डायबिटीज की शिकायत है, तो इस बात की अधिक संभावना है कि वह प्रेगनेंसी के दौरान भी इस समस्या का सामना करे, जो कई सारी जटिलताओं का कारण बन सकता है। गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का प्रबंधन बहुत ज्यादा आवश्यक है, क्योंकि इससे मां और बच्चे दोनों का ही स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।
गर्भकालीन मधुमेह (गेस्टेशनल डाइबीटीज़) वह स्थिति है, जिसमें प्रेगनेंसी के दौरान मधुमेह या डायबिटीज का निदान होता है। आंकड़ों की मानें तो लगभग 4% गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज जैसी गंभीर समस्या का सामना करती है। फैमिली हिस्ट्री और अधिक मोटापा वाली महिलाओं में यह समस्या अधिक आम है।
प्रेगनेंसी के दौरान शरीर को अधिक इंसुलिन की आवश्यकता होती है और इस बात पर ध्यान देना बहुत ज्यादा अनिवार्य होता है। इस स्थिति का सही समय पर निदान और इलाज भी बहुत ज्यादा आवश्यक होता है।
यदि गर्भकालीन मधुमेह का प्रबंधन नहीं होता है, तो इसके कारण अन्य समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है। लेकिन इसके साथ-साथ अन्य जोखिम भी बढ़ सकते हैं -
वहीं यदि गर्भकालीन मधुमेह प्रेगनेंसी के आखिरी दिनों में होती है, तो इसके कारण निम्न जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं -
गर्भकालीन मधुमेह के कारण शिशु का आकार बढ़ जाता है, जिसके कारण वह योनि से नहीं निकल पाता है। नतीजतन, ऑपरेशन से बच्चे के जन्म की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त गर्भकालीन मधुमेह से पीड़ित महिलाओं के बच्चे में कैल्शियम और शुगर की मात्रा कम होगी और बिलीरुबिन का स्तर ज्यादा होगा। उच्च बिलीरुबिन के स्तर को हाइपरबिलीरुबिनेमिया के नाम से भी जाना जाता है। इसके कारण बच्चों को पीलिया भी हो सकता है।
पहले के समय में गर्भकालीन मधुमेह की जांच कुछ ही महिलाओं में होती थी। लेकिन अब प्रेगनेंसी में सबसे पहले गर्भकालीन मधुमेह की जांच की जाती है। गर्भवती महिलाओं का सबसे पहला टेस्ट ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट होता है, जिसमें डायबिटीज की स्क्रीनिंग होती है। अलग-अलग राज्यों में गर्भकालीन मधुमेह पीड़ित महिलाओं की दर अलग-अलग होती है जैसे - पंजाब में 35% और लखनऊ में 41%। यही कारण है कि भारत के सभी राज्यों में गर्भवती महिलाओं की जांच में डायबिटीज की जांच भी होती है।
गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का प्रबंधन बहुत आसान है। इसके लिए महिलाओं, उनके परिवार और उनके डॉक्टरों को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। सबसे पहले तो डायबिटीज की जांच कराएं। जांच में यदि डायबिटीज की पुष्टि न हो तो फिर भी एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाएं और अपने डॉक्टर से निरंतर परामर्श करते रहें। यदि डायबिटीज है तो निम्न निर्देशों का पालन करें -
इसके अतिरिक्त अन्य उपाय भी हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं -
प्रेगनेंसी में डायबिटीज का प्रबंधन मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य में मदद कर सकता है। गर्भावस्था के दौरान मां और बच्चे दोनों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रसूति विशेषज्ञ और चिकित्सक से मिलने की आवश्यकता होती है। वह मां के वजन के साथ-साथ प्री-एक्लेमप्सिया, रक्त शर्करा स्तर, मूत्र में प्रोटीन, तरल पदार्थ, बच्चे के विकास आदि की निगरानी अच्छे से रख सकते हैं।
इसके अतिरिक्त 7 महीने गर्भावस्था के दौरान सामान्य शर्करा के स्तर को बनाए रखने के लिए वह पोषण संबंधित सहायता भी प्रदान कर सकते हैं। इन सभी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने से 60 से 70% मामलों में गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का प्रबंधन आसानी से हो सकता है।
गर्भकालीन मधुमेह अलग-अलग स्थिति में अलग-अलग होना चाहिए जैसे -
गर्भावस्था में शुगर को नियंत्रित करने के लिए निम्न उपायों का पालन करें -
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A DM in Endocrinology from the Institute of medical sciences, Banaras Hindu University, has worked with Safdarjung Hospital, RML Hospital, New Delhi and Fortis Escorts Hospital Jaipur. His areas of special interest include Type I Diabetes, Gestational diabetes, Thyroid disorders, Pituitary disorders, Adrenal disorders, Osteoporosis, Polycystic ovary syndrome & Endocrinological issues of Infertility. Dr. Gahlot has presented several papers, many of which have won him coveted awards.
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