पार्किंसन रोग एक ऐसी समस्या है, जिसका प्रभाव दिमाग पर देखने को मिलता है। इसके कारण कई सारी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं जैसे धीमी गति से चलना, शरीर में कंपन, संतुलन में कमी इत्यादि। पार्किंसन रोग (Parkinson’s disease) के शुरुआती लक्षणों की मदद से सही समय पर सही इलाज की योजना बनाई जा सकती है, जिससे स्थिति नियंत्रित हो सकती है। इसके अतिरिक्त यदि आप किसी भी तरह की दिमागी परेशानी से गुजर रहे हैं, तो तुरन्त ही जयपुर के सर्वश्रेष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर से मिलना चाहिए।
पार्किंसन रोग वह स्थिति है, जिसमें दिमाग का एक भाग क्षतिग्रस्त होना शुरू हो जाता है, जिसकी वजह से लक्षण धीरे-धीरे नजर आते हैं और समय के साथ यह गंभीर होने लगते हैं। हालांकि इस स्थिति का संबंध मांसपेशियों में नियंत्रण, संतुलन और गति से है। इसके साथ-साथ इस रोग के कारण सोचने समझने की क्षमता, और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
सामान्य तौर पर पार्किंसन रोग के शुरुआती लक्षण हल्के ही होते हैं, जिसके कारण लोगों को इन लक्षणों का अनुभव ही नहीं होता है, जो समय के साथ गंभीर हो सकते हैं। हमें यह भी समझना होगा कि पुरुष और महिलाओं दोनों में ही एक जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं, जिसके कारण इन्हें अलग-अलग करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। लेकिन हार्मोनल बदलावों के कारण कुछ लक्षण एक दूसरे से भिन्न हो सकते हैं, जिन्हें आगे इसी भाग में हम जानेंगे। चलिए सभी लक्षण और उनके बारे में जानते हैं।
दैनिक जीवन के कार्य जैसे चलना, फिरना, खाना खाना, इत्यादि से संबंधित लक्षणों को मोटर संबंधित लक्षण कहते हैं। पार्किंसन रोग की स्थिति में निम्न मोटर संबंधित लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं -
इसके अतिरिक्त कुछ और मोटर संबंधित लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे -
नॉन-मोटर लक्षण वह हैं, जिसमें शरीर या फिर मांसपेशियों की गतिविधि का कोई संबंध नहीं होता है। इसे पार्किंसन रोग के शुरुआती लक्षणों के रूप में भी देखा जा सकता है, क्योंकि यह लक्षण इस रोग के शुरुआती चरणों में ही उत्पन्न होते हैं। पार्किंसन रोग की स्थिति में निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव एक व्यक्ति कर सकता है -
ज्यादातर मामलों में पार्किंसन रोग का संबंध बढ़ती उम्र के साथ देखा गया है। आमतौर पर 60 साल से ऊपर के लोगों में यह समस्या अधिक आम होती है। वहीं महिलाओं की तुलना में पुरुषों में यह समस्या अधिक आम है। बहुत ही कम मामलों में 20 साल से कम उम्र के लोग इस रोग से पीडित होते हैं।
दूसरी तरफ इस रोग को जेनेटिक रोग की सूची में भी रखा जाता है। कुछ रिसर्च में इस बात की पुष्टि करते हैं कि डोपामाइन नामक रसायन की कमी के कारण पार्किंसन रोग की समस्या होती है, लेकिन यह कमी क्यों होती है, इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। कुल मिलाकर इस रोग के कारण अभी भी स्पष्ट नहीं है और रिसर्च अभी भी जारी है। पार्किंसन रोग के शुरुआती लक्षण को पहचान कर तुरंत न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर से बात करें।
वर्तमान में पार्किंसन रोग का कोई स्पष्ट इलाज नहीं है। लेकिन कुछ तरीकों से इन लक्षणों का इलाज संभव है। इलाज की योजना व्यक्तिगत होती है, क्योंकि हर व्यक्ति अलग-अलग लक्षणों का सामना करता है। ऐसे में कौन सी दवा पेशेंट के लिए कारगर है, इसका पुष्टि जांच के बाद ही होती है।
मुख्य रूप से इलाज के लिए दवाओं का प्रयोग ज्यादा होता है। वहीं कुछ मामलों में डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (Deep Brain Stimulation) की भी आवश्यकता पड़ सकती है। इसके अतिरिक्त पार्किंसन रोग के उपचार के लिए स्टेम सेल ट्रीटमेंट जैसी प्रक्रिया भी कारगर साबित हुई हैं। दवाओं के साथ पार्किंसन रोग व्यायाम इस स्थिति में बहुत कारगर साबित हुए हैं।
पार्किंसन रोग दिमाग से संबंधित एक रोग है जो तंत्रिका कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कर सकता है। इसके कारण गति, संतुलन और कोर्डिनेशन बनाए रखने में दिक्कत आती है।
पार्किंसन रोग का कारण डोपामाइन नामक रसायन की कमी है, जिसका कार्य शरीर के सभी अंग से दिमाग और दिमाग से पूरे शरीर में सिग्नल पहुंचाना है।
पार्किंसन रोग का कारण अभी भी अज्ञात है, लेकिन माना जाता है कि जेनेटिक और पर्यावरण कारक इस रोग के प्रसार में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
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