क्या आप जानते हैं कि दुनियाभर में लगभग 20 करोड़ से अधिक लोग थायराइड रोग से पीड़ित होते हैं? यह रोग थायराइड ग्लैंड से संबंधित है, जो हमारे शरीर का एक मास्टर कंट्रोल पैनल होता है। चलिए इस ब्लॉग की मदद से थायराइड रोग के संबंधित सभी जानकारी प्राप्त करते हैं जैसे - कारण, लक्षण, बचाव, इत्यादि। इस जानकारी से आपको थायराइड से बचने में मदद मिलेगी।
थायराइड एक छोटी सी तितली के आकार का ग्लैंड है, जो कंठ के ठीक नीचे गर्दन के बेस में होता है। यह ग्लैंड दो मुख्य हार्मोन से बनता है - थायरोक्सिन (T4) और ट्राईआयोडोथायरोनिन (T3), जो शरीर की सभी कोशिकाओं यानी सेल्स को प्रभावित करता है। थायराइड का मुख्य कार्य शरीर के मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करना है।
थायराइड रोग वह स्थिति है, जिसमें थायराइड ग्लैंड शरीर की आवश्यकता से कम या अधिक थायराइड हार्मोन का निर्माण करता है, जिसके कारण कई सारी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
थायराइड विकार के लक्षण बहुत हद तक उसकी गंभीरता और प्रकार पर निर्भर करते हैं। मुख्य रूप से थायराइड रोग दो प्रकार के होते हैं - हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म। चलिए सबसे पहले थायराइड रोग के लक्षणों के बारे में जानते हैं -
जब किसी को भी ऊपर बताए गए लक्षण दिखते हैं, तो तुरंत थायरॉइड स्पेशलिस्ट डॉक्टर से मिलें और जांच कराएं। इसके अतिरिक्त निम्न स्थितियों में भी थायराइड की जांच की आवश्यकता पड़ती है -
हमेशा लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि नार्मल थायराइड कितना होना चाहिए? थायराइड के नार्मल रेंज का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट का सुझाव दिया जाता है। ब्लड टेस्ट से थायराइड के सामान्य स्तर का आसानी से पता चल सकता है। चलिए समझते हैं कि नार्मल थायराइड कितना होना चाहिए -
यहां ध्यान रखें कि थायराइड का सामान्य स्तर कई कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है जैसे लिंग, उम्र, अन्य स्वास्थ्य समस्या इत्यादि।
हाइपरथायरायडिज्म एक ओवर एक्टिव थायराइड है, जिसमें बहुत अधिक थायराइड हार्मोन का निर्माण होता है। वहीं, हाइपोथायरायडिज्म एक अंडरएक्टिव थायरॉयड है, जिसमें हाइपरथायरायडिज्म की तुलना में बहुत कम थायराइड हार्मोन का निर्माण होता है। दोनों ही स्थितियों में कभी-कभी एक जैसे तो कभी-कभी अलग लक्षण दिखते हैं जैसे -
हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण
हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण
इन दोनों स्थितियों का पता लगाने के लिए डॉक्टर मुख्य रूप से ब्लड टेस्ट का सुझाव देते हैं। इस टेस्ट की मदद से शरीर में थायराइड हार्मोन के स्तर को मापा जाता है। इस टेस्ट में मुख्य रूप से थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) की जांच की जाती है। हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में टीएसएच का स्तर ज्यादा होता है। कुछ मामलों में थायराइड ग्लैंड की तस्वीरें लेने के लिए इमेजिंग टेस्ट का सुझाव भी दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त आयोडीन अपटेक टेस्ट की भी आवश्यकता पड़ सकती है।
चलिए अब दोनों के इलाज के बारे में बात करते हैं -
हाइपरथायरायडिज्म: हाइपरथायरायडिज्म के इलाज के लिए कुछ बातों का विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है -
हाइपोथायरायडिज्म: इस स्थिति के मुख्य इलाज के रूप में सिंथेटिक थायराइड हार्मोन (लेवोथायरोक्सिन) को देखा जाता है। डॉक्टर उम्र और वजन के आधार पर डोज निर्धारित करते हैं और समय-समय पर थायराइड के स्तर की जांच कर इस डोज में बदलाव करते हैं।
थायराइड रोग के इलाज में आहार मुख्य भूमिका निभाते हैं। कुछ सुपरफूड्स हैं, जो पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, वह थायराइड हार्मोन के सामान्य स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं जैसे -
थायराइड ग्लैंड की समस्याएं कई कारणों से हो सकती हैं, जिनमें जेनेटिक्स, ऑटोइम्यून रोग, आयोडीन की कमी, दवाएं और प्रेगनेंसी शामिल है।
मुख्यतः दो प्रकार की थायराइड समस्याएं एक व्यक्ति को परेशान करती हैं: हाइपो (अंडरएक्टिव) और हाइपर (ओवरएक्टिव)। इसके कारण थकान, अचानक वजन बदलना, मूड स्विंग्स और हृदय गति में उतार चढ़ाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
आमतौर पर, थायराइड सिमुलेशन हार्मोन (TSH) 0.4-4.0 mIU/L, थायरोक्सिन (T4) 6.0-10.7 µg/dL और ट्राईआयोडोथायरोनिन (T3) 100-200 ng/dL के बीच होना चाहिए।
सामान्यतः, पुरुषों में थायराइड हार्मोन का स्तर TSH (Thyroid Stimulating Hormone) के लिए 0.4 से 4.0 mU/L के बीच होना चाहिए। T3 और T4 हार्मोन का स्तर भी सामान्य सीमा में रहना चाहिए। हालांकि, यह सीमा उम्र के अनुसार बदलती रहती है। इसलिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
बच्चों में थायराइड हार्मोन का सामान्य स्तर उम्र के आधार पर निर्भर करता है। हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार 0 से 2 हफ्ते के बच्चे में थायराइड का स्तर 1.6-24.3 mU/L होना चाहिए। वहीं जिन बच्चों की उम्र 2 से 4 सप्ताह है, उनमें टीएसएच का स्तर 0.58-5.57 mU/L और 20 सप्ताह से 18 साल के बच्चे में थायराइड का सामान्य स्तर 0.55-5.31 mU/L होना चाहिए।
थायराइड विकार के उपचार का समय व्यक्ति और स्थिति के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। कुछ मामलों में उपचार के कुछ सप्ताह में सुधार देखने को मिल सकता है, जबकि अन्य मामलों में यह महीनों या वर्षों तक चल सकता है। डॉक्टर से नियमित जांच और दवाएं बहुत महत्वपूर्ण है।
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