हेमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस: कौन सा विकल्प आपके लिए सही है?
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हेमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस: कौन सा विकल्प आपके लिए सही है?

Summary

डायलिसिस एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसको तब किया जाता है, जब हमारी किडनी अपना सामान्य काम नहीं कर पाती है। मुख्य रूप से क्रोनिक किडनी रोग के स्टेज 3 या फिर किडनी फेल्योर की स्थिति में डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है। अलग-अलग रोगियों को उनके स्वास्थ्य के आधार पर अलग-अलग डायलिसिस (हेमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस) का सुझाव दिया जाता है। 

एक बड़ी रिसर्च वेबसाइट बीएमसी के अनुसार लगभग 17.2% लोग क्रोनिक किडनी रोग का सामना कर रहे हैं। इसमें से लगभग 6% लोग स्टेज 3 सीकेडी का सामना कर रहे हैं, जिनके लिए डायलिसिस एक जीवन बचाने वाला विकल्प बन हुआ है। 

डायलिसिस एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसको तब किया जाता है, जब हमारी किडनी अपना सामान्य काम नहीं कर पाती है। मुख्य रूप से क्रोनिक किडनी रोग के स्टेज 3 या फिर किडनी फेल्योर की स्थिति में डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है। अलग-अलग रोगियों को उनके स्वास्थ्य के आधार पर अलग-अलग डायलिसिस (हेमोडायलिसिस और पेरिटोनियल डायलिसिस) का सुझाव दिया जाता है। 

यहां प्रश्न उठता है कि दोनों में से आपके लिए कौन सा विकल्प बेहतर है, जिसका उत्तर हम इस ब्लॉग की मदद से ढूंढने का प्रयास करेंगे। किडनी से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या के इलाज के लिए आप हमसे या फिर हमारे किडनी रोग विशेषज्ञ से परामर्श ले सकते हैं। 

हीमोडायलिसिस क्या है?

हीमोडायलिसिस (Hemodialysis) एक प्रकार की डायलिसिस प्रक्रिया है, जिसमें किडनी की प्रक्रिया को किडनी के बाहर ही किया जाता है। इसमें डायलाइजर नामक डायलिसिस की मशीन का प्रयोग होता है, जिसे आर्टिफिशियल किडनी भी कहा जाता है।

इसमें शरीर के रक्त को निकाला जाता है और मशीन में डाला जाता है। फिर इस रक्त को मशीन में मौजूद बहुत सारे मेंमब्रेन से निकाला जाता है, जिससे रक्त में मौजूद अलग-अलग अपशिष्ट पदार्थों को साफ करने में मदद मिलती है। इसके पश्चात साफ रक्त को शरीर में डाल दिया जाता है। 

पेरिटोनियल डायलिसिस क्या है?

दूसरे प्रकार के डायलिसिस को पेरिटोनियल डायलिसिस के नाम से जाना जाता है। इस प्रक्रिया का प्रयोग तब किया जाता है, जब आपके गुर्दे सही से कार्य नहीं कर पाते हैं। इस प्रक्रिया में शरीर के रक्त को फिल्टर करने के लिए किसी भी प्रकार के बाहरी मशीन की आवश्यकता नहीं होती है। 

इस हेमोडायलिसिस प्रक्रिया में शरीर के अंदर मौजूद अंदरूनी प्राकृतिक फिल्टर का उपयोग होता है। यह प्राकृतिक फिल्टर हमारे पेट के अंदर की परतें होती हैं। पेरिटोनियल डायलिसिस प्रक्रिया बहुत सरल है, जिसे आप घर पर आसानी से कर सकते हैं। डायलिसिस शुरू करने से कुछ सप्ताह पहले, सर्जन पेट में एक ट्यूब डालते हैं, जिसे कैथेटर कहा जाता है।

डायलिसिस शुरू करने से पहले उसी कैथेटर से डायलिसिस के सॉल्यूशन को डाला जाता है। इस सॉल्यूशन में नमक और अन्य पदार्थ होते हैं, जो आपके पेट में मौजूद छोटी-छोटी परत को फिल्टर बनाने का कार्य करता है। जब वह सॉल्यूशन की थैली पूरी तरह से खाली हो जाता है, तब आप उस थैली को निकाल कर अपना सामान्य काम कर सकते हैं। 

कुछ घंटों के बाद, डायलिसिस के सॉल्यूशन और रक्त में मौजूद अपशिष्ट पदार्थ को फिर से बैग में निकाल लिया जाता है और उस सॉल्यूशन को डिसकार्ड कर दिया जाता है। 

कौन सा विकल्प आपके लिए बेहतर है: हेमोडायलिसिस या पेरिटोनियल डायलिसिस?

चलिए कुछ कारकों के आधार पर समझते हैं कि हेमोडायलिसिस या पेरिटोनियल डायलिसिस में से कौन सा विकल्प आपके लिए बेहतर है - 

  • प्रक्रिया में लगने वाला समय: दोनों ही डायलिसिस प्रक्रिया में लगने वाला समय अलग-अलग होता है। हेमोडायलिसिस प्रक्रिया के लिए आमतौर पर हर हफ्ते में कम से कम तीन दिन आपको अस्पताल जाना पड़ता है और एक सत्र में लगभग 3-5 घंटे लगते हैं। वहीं दूसरी तरफ पेरिटोनियल डायलिसिस एक आसान और सरल प्रक्रिया है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसे आप अपने घर पर आसानी से कर सकते हैं। पेरिटोनियल डायलिसिस भी दो तरह से होती है। कॉस्टेंट एम्बुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (CAPD) जिसे पूरे दिन में आप कभी भी कर सकते हैं और वहीं स्वचालित पेरिटोनियल डायलिसिस (APD) जिसे आप रात में सोते हुए करा सकते हैं।
  • आवश्यकता: हेमोडायलिसिस की आवश्यकता किडनी फेल्योर के गंभीर मामलों में ही दी जाती है। उन रोगियों को हेमोडायलिसिस पर रखा जाता है, जिनके लिए इलाज के अन्य विकल्प विफल रहते हैं। वहीं क्रोनिक किडनी डिजीज के मामलों में सबसे पहले पेरिटोनियल डायलिसिस की आवश्यकता पड़ती है। 
  • सर्जिकल आवश्यकता: दोनों ही डायलिसिस के लिए सर्जिकल प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। हेमोडायलिसिस में एक एक्सेस पॉइंट बनाया जाता है, जिससे रक्त को निकाला जाता है और फिर उसे साफ करके वापस शरीर में डाला जाता है। वहीं पेरिटोनियल डायलिसिस में डायलिसिस सॉल्यूशन को डालने के लिए हाथ में एक छोटा सा चीरा लगाया जाता है, जिससे सॉल्यूशन को शरीर में डाला जाता है। 
  • जोखिम और जटिलताएं: दोनों ही सर्जरी के अपने कुछ जोखिम और जटिलताएं होती हैं। हेमोडायलिसिस में एक्सेस साइट पर इन्फेक्शन हो सकता है। इसके साथ-साथ रोगियों को कुछ स्वास्थ्य समस्याएं परेशान कर सकती हैं जैसे कि हृदय की समस्या और ब्लड प्रेशर में बदलाव। इसके अतिरिक्त बहुत ज्यादा थकान का अनुभव होना भी इसकी एक जटिलता है। वहीं पेरिटोनियल डायलिसिस में जोखिम और जटिलताएं कम होती हैं। इसमें हर्निया और सॉल्यूशन में असंतुलन जैसी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • आहार प्रतिबंध: हीमोडायलिसिस के पेशेंट को अक्सर अपने आहार का खास ख्याल रखना पड़ता है। रक्त में मौजूद अपशिष्ट पदार्थों को बढ़ने से रोकने के लिए स्वस्थ और संतुलित आहार का सख्ती से पालन करना पड़ता है। मुख्य रूप से पोटेशियम, फास्फोरस, सोडियम और तरल पदार्थ के सेवन को रोकने की सलाह दी जाती है। वहीं पेरिटोनियल डायलिसिस के दौरान आहार में कुछ ढील दी जाती है, क्योंकि इसमें शरीर से हानिकारक पदार्थ लगातार हटाए जाते हैं। हालांकि हम सलाह देंगे कि अपने आहार संबंधी नियमों का पालन करें और पेरिटोनियल डायलिसिस के प्रभावशीलता को बढ़ाएं। 
  • जीवन शैली पर प्रभाव: यह एक महत्वपूर्ण कारक है, जिसके ऊपर बात करना बहुत ज़रूरी है। हेमोडायलिसिस क्लीनिक में होती है, जिसके लिए आपको सप्ताह में कम से कम तीन दिन निकालने पड़ते हैं, जिसकी वजह से आप बाकी काम सही से नहीं कर पाते हैं। वहीं दूसरी तरफ पेरिटोनियल डायलिसिस को आप घर में ही कर सकते हैं, जिसे करने में कोई भी असुविधा नहीं होती है। 

कौन सा विकल्प आपके लिए बेहतर है: हेमोडायलिसिस या पेरिटोनियल डायलिसिस?

इस टेबल की सहायता से आपको काफी चीजें संक्षेप में समझ गए होंगे। यदि नहीं और आप डायलिसिस के संबंध में कुछ और जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो हम आपको सलाह देंगे कि जल्द से जल्द हमारे विशेषज्ञों से सलाह लें और इलाज के विकल्पों पर विचार करें।

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

 

डायलिसिस के दौरान भोजन और दवाओं में क्या बदलाव आवश्यक है?

डायलिसिस प्रक्रिया के दौरान भोजन और दवाओं में कुछ आवश्यक बदलाव आते हैं। आहार में बदलाव के बारे में आपको ऊपर बताया गया है। वहीं इस प्रक्रिया में शरीर में कैल्शियम की कमी होने लगती है, जिसकी वजह से कैल्शियम कार्बोनेट के सेवन की सलाह दी जाती है। इसके अतिरिक्त लैन्थेनम कार्बोनेट, सेवलेमर, या सुक्रोफ़ेरिक ऑक्सी हाइड्रोक्साइड के साथ आयरन के सप्लीमेंट्स का भी सुझाव डॉक्टर देते हैं। 

क्या डायलिसिस के दौरान कोई दर्द होता है?

डायलिसिस के दौरान दर्द होने की संभावना कम होती है। हालांकि कुछ असुविधा हो सकती है, जिसके लिए डॉक्टर आपको पहले से ही सचेत कर सकते हैं।

क्या पेरिटोनियल डायलिसिस को घर पर किया जा सकता है?

हां, पेरिटोनियल डायलिसिस को आसानी से घर पर किया जा सकता है। इसके लिए बस एक कैथेटर और डायलिसिस सॉल्यूशन की आवश्यकता होती है।

Written and Verified by:

Dr. Pankaj Kumar Gupta

Dr. Pankaj Kumar Gupta

Consultant - Urologist Exp: 10 Yr

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Dr. Pankaj Kumar Gupta is a well-known urologist working in the field of modern Urology. He has been practising the speciality for more than 10 years in this field. He is a graduate of Calcutta Medical College and did his MS from NRS Medical College and MCh from IGIMS, Patna. Known as a specialist who is well acquainted with the latest trends and procedures of Urology. He has worked in the Management of Renal stone, Prostate diseases, Uro-Onco surgery and adult Urethroplasty surgery. He has proven tremendous results in various complex urological cases by using the latest technologies.

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