स्कोलियोसिस: लक्षण, कारण, जांच और इलाज की संपूर्ण गाइड
Home >Blogs >स्कोलियोसिस: लक्षण, कारण, जांच और इलाज की संपूर्ण गाइड

स्कोलियोसिस: लक्षण, कारण, जांच और इलाज की संपूर्ण गाइड

Summary

स्कोलियोसिस रीढ़ की हड्डी की असामान्य स्थिति है, जो किशोरावस्था में आम है। इसके कारण अज्ञात हो सकते हैं, लेकिन यह आपके जीवन को कष्टों से भर सकते हैं। लक्षणों में असामान्य कंधे, कूल्हों और पीठ दर्द शामिल हैं। लक्षणों के दिखने पर परामर्श लें और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाएं।

क्या आपकी या आपके बच्चे की रीढ़ में हल्का सा टेढ़ापन दिखाई दे रहा है? या बैठते/चलते समय कपड़े बार-बार एक तरफ लटकते हैं? आपको यह समझना होगा कि यह सिर्फ एक पोस्चर की समस्या नहीं है, यह स्कोलियोसिस (Scoliosis) भी हो सकता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो जाती है। यदि इस स्थिति को जल्द पहचान लिया जाए तो आपका जीवन बेहतर हो सकता है। यह रोग किसी भी उम्र में, लेकिन ज़्यादा किशोरावस्था (10–16 वर्ष) में दिखाई देता है। वैसे वयस्कों में डिजेनेरेटिव (उम्र के साथ) स्कोलियोसिस भी हो सकता है।

सही सलाह, भावनात्मक समर्थन और समय से इलाज से आप या आपके परिवार वाले बिल्कुल सामान्य और सक्रिय जीवन जी सकते हैं। यदि आपने इनमें से कोई लक्षण दिखे, तो तुरंत एक अनुभवी हड्डी रोग विशेषज्ञ से मिलें और इलाज के सभी विकल्पों पर विचार करें। हर जल्द उठाया गया कदम जिंदगी बदल सकता है।

स्कोलियोसिस क्या होता है?

स्कोलियोसिस रीढ़ की हड्डी की एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रीढ़ दाईं या बाईं ओर C या S आकार की हो जाती है। आमतौर पर, पीठ की प्राकृतिक बनावट आगे-पीछे हल्के वक्र की होती है, लेकिन स्कोलियोसिस में यह साइड की ओर मुड़ती है। कई बार कशेरुकाएं घूमती भी हैं, जिसकी वजह से पोस्चर और शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है।

भारत में किशोर आयडियोपैथिक स्कोलियोसिस (adolescent idiopathic scoliosis) की औसत दर अभी भी 0.67% से कम है। हालांकि शहरी इलाकों में इस समस्या की समझ बढ़ रही है, जो सभी के लिए एक अच्छी बात है।

स्कोलियोसिस के लक्षण

शुरुआती चरण में स्कोलियोसिस का अक्सर कोई लक्षण नहीं उत्पन्न होते हैं। लेकिन जैसे-जैसे रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन आता है, लक्षण स्पष्ट होने शुरू हो जाते हैं जैसे कि - 

  • कंधे या कूल्हे में किसी भी प्रकार की असामान्यता होना।
  • एक कंधा/कूल्हा दूसरे से ऊंचा या ज्यादा अलग नजर आना।
  • कपड़ों का बार-बार एक तरफ लटकना।
  • कमर का असमान दिखना।
  • सिर का कूल्हों का एक सीध में न होना।
  • पसलियों का एक तरफ बाहर निकलना
  • झुकी चाल या शरीर का एक तरफ झुकना।
  • पीठ में हल्का दर्द या अकड़न महसूस होना।
  • सांस लेने में परेशानी (गंभीर मामलों में)
  • आत्मविश्वास में कमी या पब्लिक में जाने से घबराना

यह लक्षण बच्चों, किशोरों और वयस्कों सब में उत्पन्न हो सकते हैं और कई बार शुरुआती संकेत माता-पिता, शिक्षक या खेल कोच देखकर नोटिस करते हैं।

स्कोलियोसिस होने के कारण

स्कोलियोसिस भी कई प्रकार के होते हैं और उन्हीं प्रकारों की मदद से कारणों का भी पता चलता है जैसे कि - 

  • इडियोपैथिक स्कोलियोसिस: यह सबसे आम प्रकार का स्कोलियोसिस है, लेकिन इसका कारण स्पष्ट नहीं है। यह समस्या अक्सर किशोरों में देखी जाती है और कई लोगों में इसका जेनेटिक संबंध भी हो सकता है। 
  • जन्मजात (Congenital) स्कोलियोसिस: भ्रूण के विकास के दौरान ही रीढ़ की हड्डी की विकृति हो जाती है, जिसे मेडिकल भाषा में जन्मजात (Congenital) स्कोलियोसिस कहा जाता है।
  • न्यूरोमस्कुलर स्कोलियोसिस: सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी तंत्रिका/मांसपेशी बीमारियां भी स्कोलियोसिस की समस्या उत्पन्न कर सकती है।
  • अपक्षयी स्कोलियोसिस: यह समस्या उम्र के साथ, रीढ़ की डिस्क और जोड़ों के घिसने से उत्पन्न होती है। 
  • संरचनात्मक स्कोलियोसिस: रीढ़ की हड्डी में स्थायी बदलाव, चोट या संक्रमण से संरचनात्मक स्कोलियोसिस की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • फंक्शनल स्कोलियोसिस: पांव की लंबाई की विसंगति या मांसपेशियों की ऐंठन फंक्शनल स्कोलियोसिस नामक समस्या उत्पन्न हो सकती है। 
  • सिंड्रोमिक स्कोलियोसिस: मार्फन सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम जैसे जेनेटिक रोग के कारण इस प्रकार के स्कोलियोसिस लोगों को परेशान करते हैं। 
  • ट्यूमर या वृद्धि: रीढ़ के पास असामान्य द्रव्यमान की वजह भी रीढ़ की हड्डी के आकार में बदलाव हो जाता है। 

अभी भी इस स्थिति के कारणों पर रिसर्च चल रही है, क्योंकि अभी इसके कई अज्ञात कारण है, जिनसे हम अभी भी अंजान है।

स्कोलियोसिस की जांच (Diagnosis of Scoliosis)

स्कोलियोसिस की जांच इलाज की सही दिशा तय कर देती है। निम्न जांच के विकल्प इसमें आपकी मदद कर सकते हैं - 

  • शारीरिक परीक्षण: डॉक्टर रीढ़ के हड्डी, कंधों/कूल्हों की असमानता, और झुकाव की जांच करते हैं।
  • फॉरवर्ड बेंड टेस्ट: डॉक्टर मरीज को आगे की ओर झुकने के लिए कहते हैं, जिससे वह मरीज की रीढ़ की हड्डी/पसलियों का उभार देख पाते हैं। 
  • स्कोलियोमीटर & एंगल मीटर ऐप्स: आज उपलब्ध डिजिटल उपाय भी शुरुआती जांच में मददगार है। इन उपकरणों के उपयोग से स्कोलियोसिस की जांच की जाती है।
  • एक्स-रे: स्कोलियोसिस कंफर्म करने व उसके ‘कॉब एंगल’ (रीढ़ की हड्डी की डिग्री, 10°+ तो स्कोलियोसिस की पुष्टि) तय करने का स्टैंडर्ड तरीका है। 
  • MRI/CT scan: गहराई से रीढ़/तंत्रिका/संक्रमण या ट्यूमर की जांच के लिए MRI/CT scan की आवश्यकता पड़ती है। 

स्क्रीनिंग के दौरान अक्सर एचसीआई, स्पाइन सर्जन एवं नर्सें भी बच्चों की मेडिकल हिस्ट्री लेते हैं, जिससे इस स्थिति के कारण की सही जांच हो पाए।

स्कोलियोसिस का इलाज (Treatment & Management)

स्कोलियोसिस का इलाज अक्सर रीढ़ की हड्डी के मोड़, स्थिति की गंभीरता और उम्र पर निर्भर करती है। चलिए स्कोलियोसिस के इलाज के सभी विकल्पों के बारे में जानते हैं और समझते हैं - 

  • निगरानी: हल्के मामलों में, सिर्फ 6-12 महीने पर जांच की जाती है और देखा जाता है कि स्थिति कितनी गंभीर हो रही है। यदि स्थिति गंभीर नहीं है, तो सामान्य व्यायाम से इसका मैनेजमेंट आसानी से हो सकता है। 
  • ब्रेसिंग: कॉब एंगल 25-40° या युवा बच्चों में वृद्धि के दौरान ब्रेस का उपयोग किया जाता है। यह एक रूढ़िवादी उपाय है, जो इस स्थिति को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उपयोग होता है। TLSO Braces, Milwaukee Braces प्रमुख ब्रेसे हैं।
  • भौतिक चिकित्सा और व्यायाम: स्कोलियोसिस स्पेसिफिक एक्सरसाइज, योग, पिलाटेस, और फिजियोथेरेपी से दर्द और पोस्चर में सुधार हो सकता है। अक्सर ब्रेसिंग/सर्जरी के बाद इसका उपयोग होता है। 
  • अन्य विकल्प: एक्यूपंक्चर और चिरौप्रैक्टिक की मदद से रीढ़ की हड्डी के दर्द के इलाज में मदद कर सकते हैं। 
  • सर्जरी (स्पाइनल फ्यूजन, VBT/VBT tethering): कॉब एंगल >45-50° या अन्य तकनीक जब सहायक नहीं होते हैं, तो यह समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। Growing Rods”, Vertebral Body Tethering (VBT) ऐसे मिनिमल इनवेसिव तकनीक है, जिससे इस स्थिति का इलाज हो सकता है।

स्कोलियोसिस के लिए जीवनशैली और व्यायाम

जीवनशैली में छोटे बदलाव और सही एक्सरसाइज से एक बेहतर जीवन जीने में मदद मिल सकती है - 

  • व्यायाम: स्कोलियोसिस-स्पेसिफिक स्ट्रेचिंग, कोर स्ट्रेंथ, ब्रीदिंग एक्सरसाइज, योग और पिलेट्स इस स्थिति में आपके लिए लाभकारी साबित हो सकते हैं।
  • सपोर्ट: ब्रेस पहनें और किसी न किसी का सपोर्ट लें।
  • सर्जरी/ब्रेसिंग के बाद: रिकवरी को तेज करने के लिए नियमित फिजियोथेरेपी जरूरी है। इसलिए सर्जरी के बाद इसका खास ख्याल रखें। 
  • शारीरिक सक्रियता बढ़ाएं: शारीरिक गतिविधि बच्चों या वयस्कों में रीढ़ की ताकत, लचीलापन और सकारात्मक सोच को बढ़ाता है।
  • इमोशनल सपोर्ट: किशोरावस्था में सामाजिक डर को कम करने के लिए परिवार/मित्र के साथ सम्मान और समझ जरूरी है। यदि घर वाले अपने बच्चे को प्रोत्साहित करेंगे, तो वह इस स्थिति से जल्द से जल्द ठीक भी हो सकता है।

कब डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए?

यदि आपके बच्चे या परिवार में किसी को भी नीचे दिए गए लक्षण नज़र आ रहे हों, जल्द से जल्द विशेषज्ञ से सलाह लें - 

  • दोनों कंधे/कूल्हों ऊंचे-नीचे होना या खिसकना।
  • कपड़ों का एक तरफ लटकना।
  • पीठ में एक तरफ झुकाव दिखना या शरीर का एक तरफ झुकना।
  • लगातार पीठ दर्द, सांस लेने में दिक्कत
  • अचानक शरीर के पोस्चर में बदलाव

यदि आप इन लक्षणों को अनदेखी स्वयं कर रहे हैं, तो यह आपको लंबे समय तक परेशान कर सकते हैं।

निष्कर्ष

स्कोलियोसिस कोई डराने वाली स्थिति नहीं है। ठीक जानकारी, जल्दी पहचान और मानव-केंद्रित इलाज से लोगों के जीवन में सुधार हो सकता है। यदि आप अपने बच्चे या किसी प्रियजन में चुपचाप बदलता पोस्चर या कोई ऊपर बताए लक्षण देख रहे हैं, आज ही पहल करें और हमारे अनुभवी विशेषज्ञों से मिल कर स्थिति की गंभीरता को समझें और अपने जीवन को बेहतर बनाएं।

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या स्कोलियोसिस बच्चों और बड़ों दोनों में हो सकता है?

हाँ, स्कोलियोसिस हर उम्र में हो सकता है। इससे प्रभावित होने वाले लोगों की सूचि में शिशु, किशोर, वयस्क और बुजुर्ग सब हैं।

क्या स्कोलियोसिस हमेशा सर्जरी से ही ठीक होता है?

नहीं। ज्यादातर हल्के/मध्यम मामलों में ब्रेसिंग, व्यायाम और निगरानी पर्याप्त है। सर्जरी सिर्फ गंभीर, तेज़ प्रगति और अंगों पर असर वाले केस में ही जरूरत होती है।

स्कोलियोसिस में कौन-से एक्सरसाइज मददगार होते हैं?

स्कोलियोसिस स्पेसिफिक स्ट्रेचिंग, योग, पिलेट्स, कोर एक्सरसाइज, पीठ की मांसपेशियां मजबूत करने वाले व्यायाम सबसे अच्छे हैं।

क्या स्कोलियोसिस दर्द का कारण बनता है?

बहुत सा केस painless होते हैं, लेकिन बढ़े हुए वक्रता में chronic pain, muscle fatigue या स्टीफनेस हो सकती है।

स्कोलियोसिस के शुरुआती संकेत कैसे पहचाने?

कपड़ों का ठीक से न लटकना, कंधा/कूल्हे का असमान होना, पीठ का झुकाव या एक तरफ prominent पसलियां – ये शुरुआती संकेत हैं।

Written and Verified by:

Dr. Aashish K. Sharma

Dr. Aashish K. Sharma

Director Exp: 27 Yr

Ortho & Joint replacement

Book an Appointment

Dr. Aashish K. Sharma is the Director of Orthopaedics & Joint Replacement Dept. at CK Birla Hospital, Jaipur, with nearly 30 years of experience. He is a leading specialist in joint replacement, arthroscopy and sports medicine, particularly hip & knee surgeries and ACL reconstructions.

Related Diseases & Treatments

Treatments in Jaipur

Orthopaedics & Joint Replacement Doctors in Jaipur

NavBook Appt.WhatsappWhatsappCall Now