रूबेला (Rubella), जिसे आमतौर पर जर्मन खसरा के रूप में जाना जाता है, रूबेला वायरस के कारण होने वाला एक संक्रामक वायरल संक्रमण है। हालांकि बच्चों में यह हल्का होता है, लेकिन वयस्कों में रूबेला गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है।
कल्पना करें कि आप सुबह उठते हैं और आपको हल्के बुखार के साथ त्वचा पर कुछ दाने जैसा महसूस होता है। पहली नजर में आपको ऐसा लग सकता है कि यह एक सामान्य चीज है, लेकिन हो सकता है कि यह कुछ और हो?
यह लक्षण रूबेला के हो सकते हैं, जो कि एक वायरल संक्रमण है। हालांकि अधिकांश लोगों में यह लक्षण गंभीर नहीं होते हैं, लेकिन प्रेगनेंसी के दौरान यह संक्रमण गंभीर जन्म दोष का कारण बन सकते हैं। अच्छी खबर यह है कि अब टीकाकरण के माध्यम से इसे रोका जा सकता है। चलिए इस संबंध में पूर्ण जानकारी इस ब्लॉग के माध्यम से इकट्ठा करते हैं। रूबेला वायरस के संबंध में किसी भी प्रकार की चिकित्सा सहायता के लिए आप हमारे अनुभवी विशेषज्ञों से परामर्श भी ले सकते हैं।
रूबेला (Rubella), जिसे आमतौर पर जर्मन खसरा के रूप में जाना जाता है, रूबेला वायरस के कारण होने वाला एक संक्रामक वायरल संक्रमण है। हालांकि बच्चों में यह हल्का होता है, लेकिन वयस्कों में रूबेला गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है।
यह जटिलताएं खासकर गर्भवती महिलाओं में अधिक देखने को मिलती है। टीकाकरण के माध्यम से संक्रमण को रोका जा सकता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य परिणामों से बचने में मदद भी मिलती है।
आमतौर पर रूबेला वायरस के लक्षण संक्रमित व्यक्ति या सतह के संपर्क में आने के 2-3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। सामान्य तौर पर रूबेला की स्थिति में निम्न लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं -
आमतौर पर यह लक्षण हल्के ही होते हैं और एक सप्ताह तक रह सकते हैं। कुछ लोग रूबेला के लक्षणों को फ्लू के लक्षण समझ लेते हैं। कुछ भी हो जाए, आपको किसी भी प्रकार के लक्षण को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
रूबेला संक्रमण किसी भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है, लेकिन कुछ समूह के लोगों में यह समस्या अधिक आम है जैसे कि -
गर्भावस्था के दौरान जर्मन खसरा संक्रमण से जन्मजात रूबेला सिंड्रोम (सीआरएस) हो सकता है, जो हृदय संबंधी असामान्यताएं, मोतियाबिंद और विकास संबंधी देरी सहित कई तरह के जन्म दोषों का कारण बनता है। यह पूरे भारत के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चिंता का विषय है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में लगभग 40,000 बच्चे हर साल सीआरएस की समस्या के साथ जन्म लेते हैं, जिसका मुख्य कारण रूबेला के खिलाफ उनके मां के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है।
रूबेला की समस्या होने के पीछे रूबेला वायरस है, जो संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने पर सांस की बूंदों के माध्यम से फैलता है। यह वायरस गर्भवती मां से उसके अजन्मे बच्चे में भी फैल सकता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। रूबेला अत्यधिक संक्रामक है और यही वजह है कि रोकथाम में टीकाकरण बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
रूबेला से बचाव में टीकाकरण एक प्रभावी तरीका है। आमतौर पर रूबेला का टीका एमएमआर {खसरा, कण्ठमाला (Mumps) और रूबेला} टीके के हिस्से के रूप में दो खुराक में दिया जाता है, जो बचपन में ही दिए जाते हैं।
टीकाकरण की पहली खुराक 12-15 महीने की उम्र में दी जाती है, और दूसरी खुराक 4-6 साल की उम्र के बीच दी जाती है। एमआर टीका अब भारत के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा है।
जिन वयस्कों को बच्चपन में यह टीका नहीं लगाया गया है, उन्हें ज़रूरी लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त जो महिलाएं प्रेगनेंसी या फैमिली प्लानिंग का विचार कर रही है, वह भी यह टीका लगवा सकते हैं। टीकाकरण के माध्यम से रूबेला की रोकथाम न केवल व्यक्तियों की रक्षा करती है, बल्कि इस रोग के प्रकोप को रोकने में भी मदद करती है, जिससे वायरस का समग्र प्रसार कम होता है।
रूबेला या जर्मन खसरा की स्थिति में हल्के लक्षण ही उत्पन्न होते हैं, लेकिन गर्भवती महिलाओं और उनके अजन्मे बच्चों के लिए यह एक बड़ा खतरा बन सकता है। रूबेला वायरस के लक्षणों को पहचानना और टीका लगवाना इस संक्रामक बीमारी को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। अगर आपको रूबेला वायरस का टीका नहीं लगा है, तो खुद को और अपने आस-पास के लोगों को संभावित जटिलताओं से बचने के लिए ऐसा करना जरूरी है। नियमित टीकाकरण इस बीमारी को नियंत्रण में रखने में मदद करता है, जो समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य में योगदान देता है।
अगर आपको रूबेला का टीका नहीं लगा है, तो सबसे पहले टीका लगवाएं, खासकर यदि आप गर्भवती होने की योजना बना रही हैं, तो यह और भी ज्यादा जरूरी है। एमएमआर टीका प्रतिरक्षा प्रदान कर सकता है, और गर्भधारण करने की कोशिश करने से कम से कम एक महीने पहले टीका लगवाना सबसे अच्छा माना जाता है।
जर्मन खसरा गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद खतरनाक है, खासकर पहली तिमाही में यह खतरा अधिक होता है। यह जन्मजात रूबेला सिंड्रोम का कारण बन सकता है, जिससे बहरापन, हृदय संबंधी असामान्यताएं और बौद्धिक अक्षमता जैसे जन्म दोष हो सकते हैं।
रूबेला से बचाव का सबसे अच्छा उपाय टीकाकरण ही है। रूबेला का टीका वायरस से आजीवन सुरक्षा प्रदान करता है। टीकाकरण के अतिरिक्त अच्छी स्वच्छता का अभ्यास करना, जैसे बार-बार हाथ धोना और संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क से बचना, संक्रमण के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है।
Written and Verified by:
An MD in Pediatrics and DCH in CPS, Dr. Kanojiya has earlier worked in Fortis Hospital Jaipur. Her areas of special interest include Asthma, Epilepsy and Learning Disability. Her paper on Coeliac Disease has been accepted for publication in the reputed journal, Indian Pediatrics
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