ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार: शुरुआती लक्षण और सहायता रणनीतियाँ
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ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार: शुरुआती लक्षण और सहायता रणनीतियाँ

Summary

ऑटिज्म एक न्यूरो-डेवलपमेंटल विकार है, जो सामाजिक बातचीत, संवाद और व्यवहार को प्रभावित करता है। इसके लक्षण बचपन में दिख जाते हैं। इसके कारणों में जेनेटिक्स, पर्यावरणीय प्रभाव और विकास में देरी शामिल हैं। सही इलाज, थेरेपी और परिवार के सहयोग से बच्चों में सुधार संभव है।

 

जब आपके घर में कोई भी इंसान (मुख्य रूप से बच्चे) नजरें चुराता है, बात करने में उसे परेशानी होती है या फिर वे कोई कार्य बार-बार दोहराता है, तो यह आपके परिवार में एक असमंजस का माहौल बना देती है। यह सारे लक्षण ऑटिज्म के होते हैं। हाल ही के डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 1% बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) पाया जाता है, यानी देश में करीब 18 मिलियन लोग किसी न किसी तरह से ऑटिज्म से प्रभावित हैं। 

भारत में अभी भी कई लोगों को इस रोग के बारे में अच्छी खासी जानकारी है, लेकिन जागरूकता के बावजूद, अभी भी अधिकतर परिवार सही समय पर जवाब नहीं ढूंढ पाते हैं, जिससे पहचान और सहायता में देर हो जाती है। अगर आपके मन में भी “ऑटिज्म क्या है?” या “ऑटिज्म में क्या करें?” जैसे सवाल हैं, तो यह ब्लॉग आपकी मदद कर सकते हैं। सबसे पहले आपको समझना होगा कि ऑटिज्म के इलाज के लिए किसी भी घरेलु उपचार पर निर्भर नहीं होना है। सही समय पर सही इलाज लेना आवश्यक है। अधिक जानकारी के लिए आप एक अनुभवी बाल रोग विशेषज्ञ से मिलें और इलाज लें।

ऑटिज्म क्या होता है? - What is Autism?

मेडिकल टर्म में कहा जाए तो ऑटिज्म एक न्यूरो-डेवलपमेंटल विकार है, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहा जाता है। यह व्यक्ति के सोचने, समझने, संवाद और समाज में मेलजोल के तरीके को प्रभावित करता है। चलिए ऑटिज्म के बारे में कुछ आवश्यक तत्वों को जानते हैं और उन्हें समझते हैं - 

  • इसका आरंभ आम तौर पर जीवन के पहले तीन सालों में होता है और लक्षण भी तभी दिखते हैं।
  • सभी बच्चों में लक्षण और उनकी गंभीरता अलग-अलग होती है। इसलिए इसे स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहा जाता है।
  • भारत समेत दुनियाभर में, लड़कों में ऑटिज्म के मामले लड़कियों की अपेक्षा करीब चार गुना अधिक देखने को मिलते हैं, इसलिए आप यह भी कह सकते हैं कि पुरुष होना भी इस रोग का एक मुख्य जोखिम कारक है।

ऑटिज्म के सामान्य लक्षण - Common Symptoms of Autism

हर बच्चा अलग होता है, लेकिन सामान्य तौर पर ऑटिज्म में यह लक्षण सभी में देखने को मिल सकते हैं - 

  • संवाद और भाषा सीखने में देरी। 
  • बोलने या शब्द समझने में कठिनाई।
  • आंखों से संपर्क कम करना या टालना
  • सामाजिक स्थिति या खेल में भागीदारी में रुचि न होना। 
  • दोहराए जाने वाले व्यवहार, जैसे ताली बजाना, घूमना, या खिलौनों को लाइन में लगाना।
  • दूसरों की भावनाओं को समझने और प्रतिक्रिया देने में परेशानी होना।
  • दिनचर्या में मामूली बदलाव से भी बेचैनी होना।
  • आवाज, स्वाद, गंध, छूने आदि के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता या प्रतिक्रिया।
  • बचपन में सही से ग्रोथ न हो पाना, जैसे जल्दी बोलना या इशारा करना न आना।

ऑटिज्म होने के संभावित कारण - Causes of Autism

ऑटिज्म का कोई एकमात्र कारण नहीं है, बल्कि यह कई कारणों से हो सकता है। चलिए ऑटिज्म के सभी संभावित कारणों को जानते हैं - 

  • जेनेटिक्स में गड़बड़ी। परिवार में पहले से कोई ऑटिज्म से ग्रस्त हो तो इसका जोखिम बढ़ सकता है।
  • डीएनए में बदलाव या क्रोमोसोम में गड़बड़ी।
  • प्रेगनेंसी के दौरान संक्रमण, प्रदूषण, जहरीली चीजों से शारीरिक संपर्क आना। 
  • समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन होना।
  • मां या पिता की अधिक उम्र होना।

हाल ही में रिसर्च में ऑटिज्म के कम-से-कम चार अलग बायोलॉजिकल सब-टाइप्स भी पहचाने गए हैं, जिनकी जेनेटिक प्रोफाइल और लक्षण अलग-अलग होते हैं। ऑटिज्म के चार प्रमुख बायोलॉजिकल सब-टाइप्स इस प्रकार हैं -

  • Social and Behavioral Challenges (सामाजिक और व्यवहारिक चुनौतियां): मुख्य तौर पर सामाजिक व्यवहार और दोहराया जाने वाला व्यवहार प्रमुख होता है। इसमें डेवलपमेंट में देरी बहुत कम होती है। इसके कारण ADHD, चिंता, डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
  • Mixed ASD with Developmental Delay (मिश्रित ऑटिज्म + विकास में देरी): चलने-फिरने व बोलने जैसी बुनियादी गतिविधियों में देरी होना। इसमें भाषा और बौद्धिक विकास में भी समस्या देखने को मिलती है। व्यवहारिक समस्याएं बाकी के सब टाइप्स के अपेक्षाकृत कम होती है।
  • Moderate Challenges (मध्यम स्तर की चुनौतियाँ): ऑटिज्म से जुड़ी आदतें और सामाजिक मुश्किलें आती हैं, लेकिन इसमें लक्षण हल्के ही होते हैं। इसमें विकास सामान्य ही होता है, और मानसिक बीमारी भी कम होती है। इसे आप शुरुआती चरण भी कह सकते हैं। 
  • Broadly Affected (अत्यधिक प्रभावी): विकासात्मक देरी, व्यवहार, सामाजिक और कम्युनिकेशन की गंभीर समस्या होना। चिंता, डिप्रेशन, अन्य मनोचिकित्सक रोग आम है। इस रोग में जेनेटिक म्युटेशन बहुत ज्यादा होता है।

ऑटिज्म की जांच और निदान कैसे होता है? - Diagnosis of Autism

अक्सर माता-पिता को बच्चे में 18-24 माह के भीतर विकसित बदलाव न दिखने की वजह से संदेह होता है। जैसे ही आपको ऊपर बताए गए लक्षण दिखते हैं, तो आप डॉक्टर से मिलकर परामर्श ले सकते हैं। वह लक्षणों को समझ कर कई टेस्ट करा सकते हैं जैसे कि-

  • डॉक्टर बच्चे के व्यवहार, बोलने-समझने की क्षमता, समाज के कार्य में भागीदारी और बच्चों की ग्रोथ का आंकलन करते हैं।
  • जांच के लिए बाल रोग विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक, स्पीच/ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट की टीम काम करती है।
  • अगर 12 महीने तक बच्चा इशारे, हल्का फुल्का कुछ बोलना या हाथ हिलाना न सीखे, 16 महीने में बोलना न सीखे, 2 साल में दो शब्दों का वाक्य न बोले, तो जांच करवाना जरूरी।

इससे हम यह समझ सकते हैं कि इस स्थिति के निदान के लिए कोई एक टेस्ट नहीं है। 

ऑटिज्म के लिए उपचार विकल्प - Treatment Options for Autism

ऑटिज्म ट्रीटमेंट में फोकस लक्षणों को नियंत्रित कर बच्चे की क्षमता को अधिकतम विकसित करने पर होता है। चलिए इलाज के सभी विकल्पों को समझते हैं - 

  • अपलाइड बिहेवियर एनालिसिस (ABA - Applied Behavior Analysis): व्यवहारिक बदलाव व सीखने-समझने की पर्सनल ट्रेनिंग होती है, जिसके मदद से बच्चों में सुधार देखा जा सकता है।
  • स्पीच थेरेपी: इस थेरेपी में संवाद क्षमता को मजबूत किया जाता है। इसकी मदद से सामाजिक व्यवहार में भी सुधार होता है।
  • ऑक्यूपेशनल थेरेपी: रोजमर्रा की स्किल्स जैसे कि कपड़े पहनना, भोजन, खुद को संभालना जैसे कार्यों में सुधार होता है और जिससे उनके पूरे स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।
  • फिजिकल थेरेपी: इस थेरेपी की मदद से मोटर स्किल और शरीर के नियंत्रण में सुधार होता है। मोटर स्किल वह स्किल होते हैं, जिनमें मस्तिष्क, नर्वस सिस्टम और मांसपेशियों के बीच कोर्डिनेशन होता है।
  • दवाएं: आक्रामकता, चिड़चिड़ापन, एंग्जायटी, डिप्रेशन जैसे लक्षणों के लिए दवाएं दी जा सकती हैं। लेकिन जिन लक्षणों का आप सामना कर रहे हैं, उन्हें मैनेज करने के लिए कोई भी दवा उपलब्ध नहीं है। 
  • नई तकनीक (2025 अपडेट्स): AI-ड्रिवन टूल्स, वर्चुअल रियलिटी, टेली हेल्थ (घर से थेरेपी), और वियरेबल डिवाइसेज़ (व्यवहार मॉनिटरिंग) जैसे कुछ आधुनिक तकनीक है, जिनकी मदद से ऑटिज्म वाले लोगों में सुधार देखने को मिल सकता है। यह सब इलाज को व्यक्तिगत, स्केलेबल व प्रभावशाली बना रहे हैं।

बच्चों में ऑटिज्म: देखभाल के टिप्स - Care for Children with Autism

एक ऑटिस्टिक बच्चे की देखभाल सिर्फ इलाज तक सीमित नहीं होती है, क्योंकि उन्हें अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। पूरा परिवार, पेरेंट्स (अभिभावक) और शिक्षक मिलकर जीवन को अनुकूल बना सकते हैं - 

  • बच्चों के साथ संवाद में सरल भाषा, इशारे और हंसी मजाक वाले पलों को शामिल करें। इससे वह खुद भी बात करने में रुचि रखेंगे।
  • दिनचर्या सुनिश्चित करें, और बदलाव धीरे-धीरे से करें। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि बच्चे बदलावों को तुरंत महसूस नहीं कर सकते हैं।
  • बच्चे के संवेदी अनुभव जैसे कि आवाज़, रोशनी और भीड़ को ध्यान में रख वातावरण नियंत्रित करें। जो उन्हें पसंद नहीं है, उससे उनकी दूरी बनाएं।
  • भोजन, नींद, और भावनाओं को डायरी में नोट करें। समस्या दिखे तो डॉक्टर से सलाह लें।
  • बच्चे को नए अनुभवों और सोशल ग्रुप एक्टिविटीज में धीरे-धीरे शामिल करें।
  • स्कूल और घर, दोनों जगह समर्थन व समझ बनाए रखें।
  • बच्चे की छोटी उपलब्धियों का भी जश्न मनाएं। इससे बच्चों में आत्मविश्वास और मोटिवेशन बढ़ता है।

निष्कर्ष

ऑटिज्म जीवन का भाग है, जिसमें न ही कोई शर्म होनी चाहिए और न ही कोई यह अपराध है। जितनी जल्दी आप इस स्थिति को पहचान लेते हैं और सही समय पर सही इलाज मिले तो उतनी ही जल्दी जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है। भारत जैसे विशाल देश में, आपकी जागरूकता और पहल लाखों बच्चों और परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है। ऑटिज्म को बिना डॉक्टर के परामर्श के मैनेज करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसलिए हम आपको सलाह देंगे कि आप हमारे अनुभवी डॉक्टर से मिलें और इलाज लें।

अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या ऑटिज्म पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है?

ऑटिज्म फिलहाल पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, परंतु शीघ्र हस्तक्षेप से बच्चे सामाजिक, संवाद और दूसरे चीजें सीखने में काफी आगे बढ़ सकते हैं। लक्षणों को नियंत्रित व जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है।

ऑटिज्म की पहचान किस उम्र में होती है?

अधिकांश मामलों में पहचान 2-3 साल की उम्र तक हो जाती है, पर कई बच्चों में लक्षण जल्दी या देर से उभर सकते हैं। दुनियाभर के हालिया स्टेटस बताते हैं कि औसतन 1 साल की उम्र में ही शुरुआती लक्षण दिखने शुरू हो सकते हैं।

क्या ऑटिज्म जेनेटिक होता है?

जी हां, अधिकतर मामलों में ऑटिज्म के पीछे आनुवंशिक (genetic) कारक पाए जाते हैं। हालांकि, पर्यावरणीय और अन्य कारक भी इसमें भूमिका निभा सकते हैं।

क्या स्पीच थेरेपी से ऑटिज्म में सुधार हो सकता है?

स्पीच थेरेपी से संवाद कौशल, शब्दावली और समाज में मेलजोल में बहुत हद तक सुधार संभव है। अधिकांश बाल चिकित्सक और विशेषज्ञ इसे इलाज का मुख्य भाग मानते हैं।

ऑटिज्म और ADHD में क्या अंतर है?

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर समाज और संवाद में गहन चुनौतियां तथा दोहरावपूर्ण व्यवहार दर्शाता है; वहीं, ADHD मुख्य रूप से ध्यान की कमी, हाइपरएक्टिविटी और नियंत्रण की समस्या से जुड़ा विकार है। दोनों में एक जैसे लक्षण भी हो सकते हैं, पर निदान और उपचार अलग हैं।

Written and Verified by:

Dr. Sushmita Banerjee

Dr. Sushmita Banerjee

Consultant - Pediatrics Exp: 34 Yr

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